शुक्रवार, 25 मार्च 2022

याद कहाँ रहता है हम दीवानों को !

काम नहीं आती है अक्ल मुहब्बत में,
याद कहाँ रहता है हम दीवानों को !

मौत खींचकर पास बुला ही लेती है,
जाना, जब जलते देखा परवानों को !

एक समय जो मंदिर - मस्जिद जाती थी,
राह वही जाती है अब मयखानों को !

सोच समझकर लफ्जों को फेंका करिए,
तीर नहीं आते फिर लौट कमानों को !

गुलशन के आजू - बाजू आबादी है,
कौन बसाया करता है वीरानों को  !

वक्त पड़े तो ले लेना हमसे हिसाब,
लिखकर रखना तुम अपने एहसानों को !

छोड़ गए जिनको मयकश भी, साकी भी,
वक्त भरेगा उन खाली पैमानों को !

दर्द, कराहों, आहों की आदत ऐसी,
जख्म भरे तो खुरचा गया निशानों को !


20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब मीना जी.
    जिसको दर्द में ही सुकून मिलने लगे उसके लिए क्या हिज्र और क्या विसाल !
    एक मकबूल शेर याद आ गया -
    'कहीं वो आ के मिटा दें न इन्तिज़ार का लुत्फ़,
    कहीं क़ुबूल न हो जाय, इल्तिजा मेरी.'

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  2. क्या बात है दी बेहतरीन, लाज़वाब गज़ल...हर शेर मुकम्मल है।

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  3. एक-एक शेर अनमोल है प्रिय मीना।सहजता और सरलता से शब्दों में पिरोया गया ये जीवन दर्शन अपनेआप में मुक्कमल है।हर शेर में कही गयी बात एक सीख और जिया गया अनुभव है।बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं आपको।लिखती रहें।ये कलम थमनी नही चाहिये।

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  4. सोच समझकर लफ्जों को फेंका करिए,
    तीर नहीं आते फिर लौट कमानों को !///
    ये सीख भी जीवन के एक अनुभव ने अभी हाल ही में दी है प्रिय मीना ❤❤

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२५-०३ -२०२२ ) को
    'बालक ने सपना देखा'(चर्चा-अंक -४३८१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  6. मीना दी,जीवन दर्शन को बहुत ही सहजता से हर शेर में पिरोया है आपने। बहुत ही लाजबाव गजल।

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  7. वाह वाह बहुत सुन्दर गजल, राधे राधे।

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  8. छोड़ गए जिनको मयकश भी, साकी भी,
    वक्त भरेगा उन खाली पैमानों को !
    वाह ! बहुत खूब ! लाज़वाब अशआरों से सजी खूबसूरत ग़ज़ल ।

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  9. वक्त पड़े तो ले लेना हमसे हिसाब,
    लिखकर रखना तुम अपने एहसानों को !

    वाह! याद रखने लायक है।
    आभार

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  10. वाह! एक से बढ़कर एक शेर और ज़िंदगी की हक़ीक़त को बयान करता हुआ, समय ही सबका हिसाब भी करता है और ज़ख़्म के साथ ख़ाली जाम भी भरता है,

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  11. मौत खींचकर पास बुला ही लेती है,
    जाना, जब जलते देखा परवानों को !

    वाह-वाह !!एक एक शेर लाज़बाब मीना जी,हर शेर जीवन का मर्म समझा रही है ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमन आपको

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  12. परिवारिक व्यस्ताओं के कारण बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आना हुआ खूबसूरत ग़ज़ल ।

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  13. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 24/04/2022 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

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  14. वक्त पड़े तो ले लेना हमसे हिसाब,
    लिखकर रखना तुम अपने एहसानों को !
    वाह!!!
    कमाल की गजल
    एक से बढ़कर एक शेर
    हिसाब भी देंगे एहसान भी मान लेंगे
    इन गुस्ताखियों को याद भी नहीं रखेंगे ये प्यार के दीवाने ।

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  15. वक्त पड़े तो ले लेना हमसे हिसाब,
    लिखकर रखना तुम अपने एहसानों को ! वाह! क्या बात है!!!

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  16. मेरी रचना पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों के रूप में आप सबने अपना स्नेह और आशीष बरसाया, इसके लिए मैं आप सबकी अत्यंत आभारी हूँ।

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  17. इस ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए तो मेरे पास मुनासिब अल्फ़ाज़ ही नहीं मीना जी। इसे तो मैं बार-बार पढ़ता रहूंगा - शायद बरसोंबरस।

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेंद्र जी। वैसे आपने जिस तरह उत्साहवर्धन |किया है, उसके लिए आभार शब्द बहुत छोटा है।

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