रविवार, 13 फ़रवरी 2022

नश्वर हर रेशा बंधन का !

मैं जीवन के शब्दकोष में

अर्थ ढूँढ़ती अपनेपन का !

भीतर जलती एक चिता है,

बाहर उत्सव, गीत सृजन का।


हृदय बावरा अब भी सोता

स्मृतियों को रखकर सिरहाने

फिर पुकार बैठेगा तुमको

यह जब - तब, जाने - अनजाने !

आस अभी, शायद चुन पाऊँ

टुकड़ा-टुकड़ा मन दर्पण का !

भीतर जलती एक चिता है

बाहर उत्सव, गीत सृजन का।


नेह के नाते, कब बन जाते,

कब ये मन पगला जाता है !

कोई ना जाने, किस क्षण में

मिलना, बंधन कहला जाता है !

तन नश्वर, बंधन भी नश्वर,

नश्वर हर रेशा बंधन का !

भीतर जलती एक चिता है,

बाहर उत्सव, गीत सृजन का।







20 टिप्‍पणियां:

  1. कौन कब किस राह पर हमसे मिल जाये...
    आखिर हर चीज़ नश्वर है
    यही जिंदगी का ताल-मेल है।
    खूबसूरत रचना।

    नई रचना- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला

    जवाब देंहटाएं
  2. अत्यंत भावपूर्ण एवं प्रभावशाली अभिव्यक्ति दी।
    ----
    सृष्टि का आधार है बंधन
    जीवों का संसार है बंधन
    नश्वरता नवजीवन सार
    टूटा हृदय, न छूटा प्यार
    भीतर भले ही जलती चिता है
    बाहर उत्सव, गीत सृजन का।
    ---
    सस्नेह प्रणाम दी,
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय मीना, वियोगी कवियों की लेखनी से दर्दीले गीत निकले हैं वह मानवता की अनमोल थाती है। भीतर की चिता से भुगत भोगी स्वयम ही परिचित रहता है। उस पीड़ा से संसार का क्या लेना-देना? मानव स्वभाव है कि वह प्राप्य से सदैव असंतुष्ट और अप्राप्य से अनुराग की कामना करता है। इन्ही सब प्रश्नों से दोचार होता जीवन पथ पर अग्रसर रहता है। ऐसे ही सवालों से उलझते मन की व्यथा को बड़े सरल,सहज शब्दों में अभिव्यक्त करती रचना के लिए हार्दिक बधाई 🙏🌷🌷

    जवाब देंहटाएं
  4. हृदय बावरा अब भी सोता
    स्मृतियों को रखकर सिरहाने
    फिर पुकार बैठेगा तुमको
    यह जब - तब, जाने - अनजाने !
    आस अभी, शायद चुन पाऊँ
    टुकड़ा-टुकड़ा मन दर्पण का !
    भीतर जलती एक चिता है
    बाहर उत्सव, गीत सृजन का।//
    👌👌🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (14-02-2022 ) को 'ओढ़ लबादा हंस का, घूम रहे हैं बाज' (चर्चा अंक 4341) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर मीना जी !
    भीतर-भीतर कुंठा की चिता भले ही जलती रहे किन्तु बाहर सृजन के फूल खिलते रहिए और उन से वातावरण महकाते रहिए.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन।

    नेह के नाते, कब बन जाते,
    कब ये मन पगला जाता है !.... वाह!
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. विरह और मिलन के ताने बाने से बुना जाता है रिश्तों का संसार, सुंदर सृजन!

    जवाब देंहटाएं
  9. हृदय बावरा अब भी सोता

    स्मृतियों को रखकर सिरहाने

    फिर पुकार बैठेगा तुमको

    यह जब - तब, जाने - अनजाने !

    आस अभी, शायद चुन पाऊँ

    टुकड़ा-टुकड़ा मन दर्पण का !

    भीतर जलती एक चिता है

    बाहर उत्सव, गीत सृजन का।
    हृदय बावरे को समृतियों के साथ छोड़ अंतर्मन में दुःख कुण्ठा निराशा की जलती चिता की घोर तपन सह बाहर के सृजन उत्सव में उपस्थित रहना दुनियादारी निभाना आसान तो नहीं । जो विरले करते है ऐसा जीवन की परीक्षा में वही सफल हैँ...
    अन्तरमथन से उपजी गूढ़ अरःथ समेटे गहन एवं लाजवाब भावाभिव्यक्ति
    वाह!!!!

    जवाब देंहटाएं
  10. 'बाहर उत्सव गीत सृजन का' बहुत भावपूर्ण सुन्दर गीत!

    जवाब देंहटाएं
  11. हृदय बावरा अब भी सोता
    स्मृतियों को रखकर सिरहाने
    फिर पुकार बैठेगा तुमको
    यह जब - तब, जाने - अनजाने !
    आस अभी, शायद चुन पाऊँ
    टुकड़ा-टुकड़ा मन दर्पण का !
    भीतर जलती एक चिता है
    बाहर उत्सव, गीत सृजन का।

    भावनाओं से ओतप्रोत हृदय स्पर्शी रचना😍💓

    जवाब देंहटाएं
  12. जीवन की ऊहापोह और नश्वरता को हृदयस्पर्शी भावों में दर्शाती
    अनुपम कृति मीना जी !

    जवाब देंहटाएं
  13. नेह के नाते, कब बन जाते,

    कब ये मन पगला जाता है !

    कोई ना जाने, किस क्षण में

    मिलना, बंधन कहला जाता है !

    तन नश्वर, बंधन भी नश्वर,

    नश्वर हर रेशा बंधन का !..जीवन संदर्भ को परिभाषित करती उत्कृष्ट रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  14. सार्थक चिंतन करते भाव इस रचना के ..
    मिलन कब बंधन मान लिया जाए ... ये सच में पता नहीं चलता पर जो नश्वर है उसका बंधन कैसा ...

    जवाब देंहटाएं
  15. गज़ब मीना जी बहुत ही सुंदर।
    हृदय में गहरे उतरता सृजन।
    आस अभी, शायद चुन पाऊँ

    टुकड़ा-टुकड़ा मन दर्पण का !👌
    लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं