बुधवार, 13 मई 2020

मंजिल नहीं यह बावरे !

चल, दूर कहीं चल मन मेरे
मंजिल नहीं यह बावरे !!!

पाँव डगमग हो रहे औ'
नयन छ्लछ्ल हो रहे,
मीत बनकर जॊ मिले थे
वह भरोसा खो रहे।
प्रेम की बूँदों का प्यासा
बन ना चातक बावरे !!!

चल, दूर कहीं चल मन मेरे
मंजिल नहीं यह, बावरे !!!

पथ अंधेरा गर मिले तो
आस के दीपक जला ले,
राह में काँटें अगर हों
पाँव को अपने बचा ले !
तू अकेला ही प्रवासी
कोई न तेरे साथ रे !!!

चल, दूर कहीं चल मन मेरे
मंजिल नहीं यह, बावरे !!!

याद आएँ जो तुझे, कूचे
कभी इस शहर के
आँसुओं को मत बहाना
घूँट पीना जहर के ।
वेदना मत भूलना यह
भरने ना देना घाव रे !!!

चल, दूर कहीं चल मन मेरे
मंजिल नहीं यह, बावरे !!!




19 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 14 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. ओह दी हृदयस्पर्शी गीत।
    मज़दूरों की व्यथाओं से व्यथित प्रत्येक हृदय की साझा अभिव्यक्ति है आपकी रचना।
    -----
    इसे पढ़कर कुछ पंक्तियाँ फूटी है..
    सादर समर्पित
    ------
    वेदना के गान से
    अश्रुओं की थान से
    घाव अब धुलते नहीं
    भ्रम है या कि सत्य है
    वे जी रहे हैं आन से।
    –----

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    1. मुझे तो लगता है कि भ्रम ही है। आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत शुक्रिया पर कभी कभी लगता है कि काश ऐसी परिस्थितियाँ ही जन्म न लें जिनके परिणामस्वरुप हमारी लेखनी को यह लिखना पड़े।

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  3. काश! इस दर्द को भारत का जन मानस और यहाँ की सरकारें समझ लेती। मैं रोज राष्ट्रीय राजमार्ग पर अपने घरों की ओर पैदल जाते श्रमिक समूहों को देख रहा हूँ और किंकर्तव्यविमूढ़ हूँ।

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    1. आदरणीय विश्वमोहनजी, जब से यह पलायन देख सुन रही हूँ, हतप्रभ हूँ। कोई नहीं समझेगा इनका दर्द, पर मैं कुछ कुछ जानती हूँ। मैंने बचपन में भोगा है। कभी हिम्मत कर पाई तो लिखूँगी। बहुत बहुत आभार आपका।

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  4. याद आएँ जो तुझे, कूचे
    कभी इस शहर के
    आँसुओं को मत बहाना
    घूँट पीना जहर के ।
    वेदना मत भूलना यह
    भरने ना देना घाव रे !!!
    सही कहा इस वेदना को मत भूलना इन घावों को मत भरने देना...ये शहर तेरी मंजिल नहीं अब फिर न आना यहाँ...
    ये शहर शहर न होता
    गर तेरी मेहनत न होती
    अब श्रम दे अपने गाँव को
    शहर सा बना बट छाँव को
    जन्मभूमि को ही बना तू
    अब कर्मभूमि शान से....
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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    1. यदि श्रमिकों का गाँवों से पलायन रुक सके तो इससे बेहतर कोई बात ही नहीं होगी सुधाजी।
      आपकी विस्तृत टिप्पणी एवं सकारात्मक पंक्तियों के लिए बहुत बहुत आभार आपका।

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  5. उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया कविताजी।

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  6. वाह!!मीना जी ,बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन । मजदूरों की व्यथा एक -एक शब्द से फूट पडी है ।

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  7. पथ अंधेरा गर मिले तो
    आस के दीपक जला ले,
    राह में काँटें अगर हों
    पाँव को अपने बचा ले !
    तू अकेला ही प्रवासी
    कोई न तेरे साथ रे !!!

    बहुत सुंदर ,मार्मिक सृजन ,एक वक़्त आता हैं जब जीवन का सफर अकेले ही कटनी होती हैं ,सादर नमन

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  8. कोई नहीं सुन रहा इनकी व्यथा .. काश संवेदनशीलता बची रहे इंसान में ... पर नहीं ऐसा नहीं हो रहा ... दर्द है इन सबदों में ... काश कोई इनकी व्यथा पे सोचे ...

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  9. याद आएँ जो तुझे, कूचे
    कभी इस शहर के
    आँसुओं को मत बहाना
    घूँट पीना जहर के ।
    वेदना मत भूलना यह
    भरने ना देना घाव रे !!!

    चल, दूर कहीं चल मन मेरे
    मंजिल नहीं यह, बावरे !!!
    सुंदर शब्द चित्रण ,अति उत्तम

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  10. पथ अंधेरा गर मिले तो
    आस के दीपक जला ले,
    राह में काँटें अगर हों
    पाँव को अपने बचा ले !
    तू अकेला ही प्रवासी
    कोई न तेरे साथ रे !!!
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, मीना दी।

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  11. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२६ -०६-२०२०) को 'उलझन किशोरावस्था की' (चर्चा अंक-३७४५) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  12. गहरी चोट की कसक आसानी से नहीं जाती ...
    मंगलकामनाएं !!

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  13. याद आएँ जो तुझे, कूचे
    कभी इस शहर के
    आँसुओं को मत बहाना
    घूँट पीना जहर के ।
    वेदना मत भूलना यह
    भरने ना देना घाव रे !!!
    मन में व्याप्त गहन वेदना की सार्थक अभिव्यक्ति प्रिय मीना |

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