बुधवार, 8 अप्रैल 2020

क्या वतन से रिश्ता कुछ भी नहीं ?

धर्म से रिश्ता सब कुछ है,क्या वतन से रिश्ता कुछ भी नहीं?
ओ भाई मेरे,ओ बंधु मेरे,क्या अमन से रिश्ता कुछ भी नहीं?

जिस माटी में तुम जन्मे, खेले-खाए और पले - बढ़े
उस माटी से गद्दारी क्यों, ये कैसी जिद पर आज अड़े ?
क्या अक्ल गई मारी तेरी, किसके बहकावे में बिगड़े,
जी पाओगे अपने दम पर, क्या आपस में करके झगड़े?
क्यूँ समझाना बेकार हुआ, क्यूँ शत्रु हुए मानवता के?
क्यूँ वतनपरस्ती भूल गए, क्या यही सिखाया मजहब ने?

शाख से ही रिश्ता है क्या, इस चमन से रिश्ता कुछ भी नहीं?
धर्म से रिश्ता सब कुछ है और वतन से रिश्ता कुछ भी नहीं?

क्यों छेद कर रहे उसमें ही, जिस थाली में तुम खाते हो?
जो हाथ तुम्हारे रक्षक हैं, उनको ही तोड़ने जाते हो ?
हम एक रहें और नेक रहें, क्या यह मानव का फर्ज़ नहीं?
यह धरती तेरी भी माँ है, माँ का तुझ पर कोई कर्ज नहीं?
नफरत से नफरत बढ़ती है, क्यों आग लगाने को निकले?
इक सड़ी सोच को लेकर क्यों, ईमान मिटाने को निकले?

क्या तेरी नजर में भाई मेरे, इंसान से रिश्ता कुछ भी नहीं?
धर्म से रिश्ता सब कुछ है और वतन से रिश्ता कुछ भी नहीं?



29 टिप्‍पणियां:

  1. काश कि धर्म से रिश्ता रखने वाल़ो का कोई धर्म भी होता तो फिर वतन ही सबकुछ होता न...।
    एक प्रबुद्ध संवेदनशील मन में जमा गुस्सा जब फूटता है तो ऐसी ही आक्रोशित अभिव्यक्ति निकलती है दी।
    आपके सारे प्रश्न जाएज़ है दी।
    सादर।

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय श्वेता। हालातों को देख देखकर हतप्रभ हूँ।

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  2. जब मति मरी जाती अहि ऐसा होने लगता है ... नफरत कुछ सोचने नहीं देती इंसान को ... दर्म का मतलब काश ठीक से समझ सके इंसान ...

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    1. कुछ समझ नहीं आ रहा सर, एक तो देश पर ऐसा संकट, उसमें धर्म के नाम पर मानवता को मजाक बना दिया है। बहुत बहुत शुक्रिया रचना पर अपने विचार देने के लिए।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक कीचर्चा गुरुवार(०९-०४-२०२०) को 'क्या वतन से रिश्ता कुछ भी नहीं ?'( चर्चा अंक-३६६६) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. चर्चामंच पर अपनी रचना के चयन से बहुत अच्छा लगा आदरणीया अनीता जी। सादर आभार।

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  4. मीना दी , आपने बिल्कुल सही कहा है, परंतु यदि देश के प्रति हमारा कुछ भी कर्तव्य होता तो हम भष्टाचार, भाई-भतीजावाद,धार्मिक पाखंड जैसा कि इन दिनों जमाती कर रहे हैं और रूढ़ीवाद अथवा कथित प्रगतीशीलवाद से ऊपर उठकर सर्वप्रथम राष्ट्र को महत्व देते ,उसके प्रति अपने नागरिक दायित्व को समझते, बातें बनाना छोड़ , माँ भारती के लिए अपना शीश देने को तत्पर रहते।

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    1. सभी के लिए परीक्षा की घड़ी है शशिभाई। मन में मची हलचल को लिख दिया है बस। सादर आभार अपने व्यस्त समय में से वक्त निकालकर आपने रचना पर अपने विचार दिए।

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  5. अगर धर्म से सच्चा रिश्ता भी समझते तो देशधर्म निभाना खुद ब खुद आ जाता ,मगर मीना जी ये तो इंसान ही नहीं हैं चलते फिरते हैवान हैं। बेहद दुःख और आक्रोश से भरा आपका ये सृजन अंतरात्मा को झकझोड़ रही हैं ,मगर उन हैवानों को कहा सुनाई देगा ,सादर नमन आपकी लेखनी को

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    1. कोरोना से तो डर नहीं लगा पर नफरत की आग में स्वयं जलनेवालों और दूसरों को भी जलानेवालों से अब डर लगने लगा प्रिय कामिनी बहन। रचना पर अपने विचार देने के लिए स्नेहपूर्ण आभार आपका।

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  6. सच तो ये है कि सच तक पहुंचा न गया
    सच तो ये है कि हमने झूटों से सच का सबूत न माँगा
    सच तो ये है कि हम सब एक ही लाठी से हांके गये
    सच तो ये है कि हमें केवल एक ही पहलू दिखाया गया
    सच तो ये है कि हमें केवल एक ही पहलू देखना अच्छा लगा
    सच तो ये भी है कि सोई हुई पत्रकारिता पर हमें अँधा विश्वास है
    सच तो ये भी है कि इसे ही हम जागृत अवस्था मान बैठे हैं.
    सच तो ये है कि सच को जानने से पहले हम बहुत कुछ कर बैठते है
    सच तो ये है कि सच को जानने के बाद हमारा अभिमान आड़े आता है
    सच तो ये है कि फिर हम मौन धारण करते हैं
    सच तो ये है कि हम सयाने होने की नकल मात्र हैं.
    खुबसुरत रचना.
    नयी रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 

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    1. आपके विचारों से मैं सहमत हूँ आदरणीय रोहितास जी। आपका हृदयपूर्वक आभार।

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  7. बहुत सुंदर !
    पर अब शायद समझाने का समय निकल चुका है

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    1. पता नहीं इंसान ही इंसान का दुश्मन क्यों हो गया ? तभी तो ईश्वर ने ये सजा दी है ना कि एक इंसान दूसरे इंसान से दूर रहे, इंसान को इंसान से ही खतरा है ना इस बीमारी में ! पर करे कोई, भरे कोई ऐसा भी हो रहा है। सादर आभार गगनजी, आपके विचार रखने हेतु।

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  8. आपके भावों से विचारों से पूर्णरूपेण सहमति । गहन और गंभीर प्रश्न उठाती चिन्तनपरक भावाभिव्यक्ति ।



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  9. आपकी दो टूक बात लिखने की इस अद्भुत कला को नमन मीना जी
    सही कहा इनका स्वदेश से कोई रिश्ता नहीं
    और नहीं ये किसी भी धर्म के हो सकते हैं....ये जमाती नहीं और न ही इस्लाम के ...
    वरना ये कम से कम अपने धर्मगुरुओं की तो सुनते
    समसामयिक हालातों पर बहुत ही सटीक एवं लाजवाब सृजन है आपका।

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  10. धर्म में घुसी धर्मान्धता ने वतन में नफ़रत की हवाओं को हवा दी है जिसमें कुछ स्वार्थी तत्त्वों ने अपने अमानवीय हथकंडे पूरे करने के रास्ते बना लिये हैं। समस्या की जड़ की ओर इंगित करती रचना में वतन से जुड़े विभिन्न आयामों की ओर हमारा ध्यान खींचते हुए भाव जगाने का सार्थक प्रयास किया है।

    बधाई एवं शुभकामनाएँ। लिखते रहिए।

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    1. सादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी। आपका ब्लॉग पर आना प्रसन्नता देता है।

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  12. प्रिय मीना , धर्मांध लोगों को खरी खरी सुनाती ये विचारोत्तेजक रचना बहुत पहले पढ़ ली थी पर उस समय लिख ना पायी। कितना दुखद है देशहित से ज्यादा स्वहिताप उस पर भी मानवता पर करारी चोट करना कुछ लोगों ने अपना असली धर्म समझ लिया है। काश उनका विवेक जा उन्हें सही दिशा में ले जाए।
    विशयात्मक विमर्श से रचना के विषय को विस्तार मिल रहा है। आजकल ब्लॉग पर ऐसी रचनाएँ प्राय दिखती नहीं जिन पर विमर्श होता है ।

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  13. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-2-22) को 'तब गुलमोहर खिलता है'(चर्चा अंक-4346)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  14. वाह!बहुत ही सुंदर आवाहन करता सृजन।
    गज़ब लिखते हो दी 👌

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