नसों में खौलते लहू का,
ज्वार लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
मत लिख अब बंसी की धुन,
मत लिख भौंरों की गुनगुन,
अब झूठा विश्वास ना बुन,
लिख, फूलों से काँटे चुन !
बहुत हुआ, अब कटु सत्य
स्वीकार, लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
पुष्पों की पंखुड़ियों के,
वर्षा की रिमझिम लड़ियों के,
यौवन की उन घड़ियों के,
तारों की फुलझड़ियों के
गीत बहुत लिख लिए,
अंगार लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
गूँगे कंठ की वाणी बन,
जोश से भरी जवानी बन
हारे दिल की बन हिम्मत,
आशा भरी कहानी बन !
शोषित, पीड़ित, आहत के
अधिकार लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
रोता है अब जन-गण-मन,
लुटता है जनता का धन,
देश भूमि का सुन क्रंदन,
मत लिख पायल की छ्न-छ्न !
शिव का त्रिशूल, शक्ति की
तलवार लिख मेरी कलम !!!!!
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
ज्वार लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
मत लिख अब बंसी की धुन,
मत लिख भौंरों की गुनगुन,
अब झूठा विश्वास ना बुन,
लिख, फूलों से काँटे चुन !
बहुत हुआ, अब कटु सत्य
स्वीकार, लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
पुष्पों की पंखुड़ियों के,
वर्षा की रिमझिम लड़ियों के,
यौवन की उन घड़ियों के,
तारों की फुलझड़ियों के
गीत बहुत लिख लिए,
अंगार लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
गूँगे कंठ की वाणी बन,
जोश से भरी जवानी बन
हारे दिल की बन हिम्मत,
आशा भरी कहानी बन !
शोषित, पीड़ित, आहत के
अधिकार लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
रोता है अब जन-गण-मन,
लुटता है जनता का धन,
देश भूमि का सुन क्रंदन,
मत लिख पायल की छ्न-छ्न !
शिव का त्रिशूल, शक्ति की
तलवार लिख मेरी कलम !!!!!
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !
आज तो आपकी रचना का अंदाज ही कुछ अलग है मीना दी, कुछ इसी तरह का...
जवाब देंहटाएंजला अस्थियां बारी-बारी,
चटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर,
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।
बहुत अच्छा लगा।
बहुत आभार शशिभाई।
हटाएंरोता है अब जन-गण-मन,
जवाब देंहटाएंलुटता है जनता का धन,
देश भूमि का सुन क्रंदन,
मत लिख पायल की छ्न-छ्न !
शिव का त्रिशूल, शक्ति की
तलवार लिख मेरी कलम
शानदार ,बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन मीना जी
सस्नेह धन्यवाद कामिनी बहन
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 12 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया रचना को चुनने के लिए आदरणीया यशोदा दी।
हटाएंवाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत समय के बाद आपका आशीष पाकर मन उल्लसित हुआ आदरणीय विश्वमोहन जी। सादर आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीया दीदी, मेरी रचना को हमकदम में शामिल करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-02-2020) को 'गूँगे कंठ की वाणी'(चर्चा अंक-3614) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
मेरी रचना को चर्चामंच में लेने के लिए आपका सादर आभार आदरणीय रवींद्रजी।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय ओंकारजी
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद प्रिय अनुराधा बहन
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
बहुत बहुत आभार आदरणीय खरे जी।
हटाएंवाह !बेहतरीन सृजन सखी
जवाब देंहटाएंसादर
सादर धन्यवाद अनिताजी
हटाएंगूँगे कंठ की वाणी बन,
जवाब देंहटाएंजोश से भरी जवानी बन
हारे दिल की बन हिम्मत,
आशा भरी कहानी बन !
शोषित, पीड़ित, आहत के
अधिकार लिख मेरी कलम !
यही दायित्व है कवि पर , और समय की जरूरत भी यही है..कलम को धारदार बनाना होगा और सत्य को उजागर कर कर्तव्य बोध कराना होगा।
लाजवाब सृजन....
वाह!!!
बहुत बहुत आभार सुधाजी।
हटाएंपुष्पों की पंखुड़ियों के,
जवाब देंहटाएंवर्षा की रिमझिम लड़ियों के,
यौवन की उन घड़ियों के,
तारों की फुलझड़ियों के
गीत बहुत लिख लिए,
अंगार लिख मेरी कलम !
बहुत खूब प्रिय मीना बहन ! समय की आवाज है ये ,जिसे आपने कलम को सुंदर , ओजपूर्ण उद्बोधन के माध्यम से शब्द दिए हैं | सराहनीय और प्रभावी सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं |
प्रिय रेणु, आपके अनमोल शब्दों के लिए हृदय से आभार और बहुत सारा स्नेह।
हटाएंनसों में खोलते लहू का ज्वार लिख मेरी कलम
जवाब देंहटाएंज़ुल्म और अन्याय का प्रतिकार लिख मेरी कलम
कलम की ताकत का सुन्दर वर्णन
बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय रितु। सस्नेह।
हटाएंकाश हर कलम ऐसी हो जाए ...
जवाब देंहटाएंज्वाला निकले जो भस्म कर दे हर अन्याय को ... हर जुल्म डरे प्रतिकार से ...
कमाल की रचना ...
हारे दिल की बन हिम्मत,
जवाब देंहटाएंआशा भरी कहानी बन !
शोषित, पीड़ित, आहत के
अधिकार लिख मेरी कलम !....
ओज संम्पन्न अत्यंत सुन्दर सृजन मीना जी ।
प्रभावशाली , बधाई आपको
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-06-2020) को "शब्द-सृजन 24- मसी / क़लम " (चर्चा अंक-3725) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कलम चाहे तो सरकार बदल सकती है
जवाब देंहटाएंकलम चाहे तो जिंदगी का आधार बदल सकती है
बहुत अच्छी रचना
बहुत खुबसूरत एक कलम ही है जिसे हम तलवार की तरह इस्तेमाल कर सकते है बदलाव की आंधी ला सकते है और सब कुछ बदल कर रख सकते है जी नमन
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-2-22) को 'तब गुलमोहर खिलता है'(चर्चा अंक-4346)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंहृदय से फुटते भाव शब्दों में ढलते है तब कुछ ऐसा सृजन ढलता है गज़ब की शैली है आपकी दी।
जवाब देंहटाएंसराहनीय।
सादर