पतवार तुम्हारे हाथों है,
मँझधार का डर क्यों हो मुझको ?
इस पार से नैया चल ही पड़ी,
उस पार का डर क्यों हो मुझको ?
जीवन की अँधेरी राहों पर
चंदा भी तुम, तारे भी तुम ।
सूरज भी तुम, दीपक भी तुम,
अँधियार का डर क्यों हो मुझको ?
मैं पतित, मलीन, दुराचारी,
तुम मेरे गंगाजल कान्हा !
घनश्याम सखा तुम हो मेरे,
संसार का डर क्यों हो मुझको ?
जग तेरी माया का नाटक
तूने ही पात्र रचा मेरा,
जिस तरह नचाए, नाचूँ मैं
बेकार का डर क्यों हो मुझको ?
मैं कर्तापन में भरमाया
तू मुझे देखकर मुस्काया,
जब सारा खेल ही तेरा है
तो हार का डर क्यों हो मुझको ?
संसार का प्रेम है इक सपना,
है कौन यहाँ मेरा अपना !
तू प्रेम करे तो दुनिया के
व्यवहार का डर क्यों हो मुझको ?
मँझधार का डर क्यों हो मुझको ?
इस पार से नैया चल ही पड़ी,
उस पार का डर क्यों हो मुझको ?
जीवन की अँधेरी राहों पर
चंदा भी तुम, तारे भी तुम ।
सूरज भी तुम, दीपक भी तुम,
अँधियार का डर क्यों हो मुझको ?
मैं पतित, मलीन, दुराचारी,
तुम मेरे गंगाजल कान्हा !
घनश्याम सखा तुम हो मेरे,
संसार का डर क्यों हो मुझको ?
जग तेरी माया का नाटक
तूने ही पात्र रचा मेरा,
जिस तरह नचाए, नाचूँ मैं
बेकार का डर क्यों हो मुझको ?
मैं कर्तापन में भरमाया
तू मुझे देखकर मुस्काया,
जब सारा खेल ही तेरा है
तो हार का डर क्यों हो मुझको ?
संसार का प्रेम है इक सपना,
है कौन यहाँ मेरा अपना !
तू प्रेम करे तो दुनिया के
व्यवहार का डर क्यों हो मुझको ?