मंगलवार, 7 मई 2019

हम आशाओं पर जीते हैं !

घनघोर निराशा के युग में
हम आशाओं पर जीते हैं,
रखते हैं चाह अमरता की
और घूँट गरल के पीते हैं।

सीते हैं झूठे वादों से,
हम यथार्थ की फाटी झोली।
कागा के कर्कश स्वर को,
समझ रहे कोयल की बोली ।
विद्वानों को उपहास प्राप्त,
मूरख पा जाता है वंदन।
ईश्वर भी असमंजस में हैं,
किसका मंदिर,किसका चंदन ?
सबको अपनी पड़ी यहाँ
करूणा के घट सब रीते हैं।।

घनघोर निराशा के युग में
हम आशाओं पर जीते हैं।।

छ्ल कपट, प्रेम का भेष धरे
मैत्री का जाल बिछाता है।
कंचन पात्रों में जहर भरे,
अमृत का स्वांग रचाता है।
जीवन के चौराहों पर अब,
सारी राहें भरमाती हैं।
दुनियादारी के दाँव पेच,
दुनिया ही यहाँ सिखाती है ।
जीने की कठिन लड़ाई में,
दीनों के सब दिन बीते हैं।

घनघोर निराशा के युग में
हम आशाओं पर जीते हैं।

यह कामवासना का कलियुग,
यह स्वार्थसाधना का कलियुग,
यह अर्थकामना का कलियुग,
यह छद्म धारणा का कलियुग !
संस्कारपतन का युग है यह,
अन्याय, दमन का युग है यह,
कैसी प्रगति, कैसा विकास,
बस शस्त्र सृजन का युग है यह !
सब संसाधन धनवानों के
निर्धन को नहीं सुभीते हैं।

घनघोर निराशा के युग में
हम आशाओं पर जीते हैं !!!













11 टिप्‍पणियां:

  1. आज के जहान की यही सच्चाई है.

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. आवश्यक सूचना :

    सभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html

    जवाब देंहटाएं
  4. छ्ल कपट, प्रेम का भेष धरे
    मैत्री का जाल बिछाता है।
    कंचन पात्रों में जहर भरे,
    अमृत का स्वांग रचाता है।
    बहुत खूब मीना जी आज की यही सच्चाई हैं ,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह मीनाजी,
    जुमलेबाजी के इस युग में, धोखा ही इक सच्चाई है,
    छल-कपट और मक्कारी ही नेताओं की अच्छाई है.

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. मीना जी बहुत सुंदर सृजन है आपका। प्रवाह और काव्यात्मक सुघड़ता पाठक को बांध लेती है।
    अप्रतिम अनुपम।

    जवाब देंहटाएं
  8. कंचन पात्रों में जहर भरे,
    अमृत का स्वांग रचाता है।
    .....आज की यही सच्चाई हैं

    जवाब देंहटाएं
  9. मैं आप सभी की पुनः पुनः आभारी हूँ। हृदयपूर्वक धन्यवाद सभी को !!!

    जवाब देंहटाएं