पत्थर से फूटते हुए झरने नहीं लिखती,
मेरी कलम अब प्यार के नगमे नहीं लिखती।
इस गुलसितां से कोई, गुलों को चुरा गया
काँटों का ताज पहन के, सेहरे नहीं लिखती।
छुप-छुप के रोएँ कब तलक,घुट-घुट के क्यों मरें ?
जो सच लगा वो कह दिया, परदे नहीं लिखती।
ना दिल रहा, ना दर्द ही, ना दर्द-ए-दिल रहा,
अब लाइलाज दर्द के किस्से नहीं लिखती।
जब सफा पलटोगे, अश्क रुक ना सकेंगे
तुमको ना याद करने के वादे नहीं लिखती।
इस तल्ख जमाने ने इतनी ठोकरें मारीं,
अब देखकर तेरे कदम, सजदे नहीं लिखती।
मेरी कलम अब प्यार के नगमे नहीं लिखती।
इस गुलसितां से कोई, गुलों को चुरा गया
काँटों का ताज पहन के, सेहरे नहीं लिखती।
छुप-छुप के रोएँ कब तलक,घुट-घुट के क्यों मरें ?
जो सच लगा वो कह दिया, परदे नहीं लिखती।
ना दिल रहा, ना दर्द ही, ना दर्द-ए-दिल रहा,
अब लाइलाज दर्द के किस्से नहीं लिखती।
जब सफा पलटोगे, अश्क रुक ना सकेंगे
तुमको ना याद करने के वादे नहीं लिखती।
इस तल्ख जमाने ने इतनी ठोकरें मारीं,
अब देखकर तेरे कदम, सजदे नहीं लिखती।
वाह! क्या लिखा है. खूबसूरत गजल
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर
हटाएंसुन्दर
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