शनिवार, 16 दिसंबर 2017

सुन रहे हो ना....

गर्जते बादलों से
बारिश नहीं होती,
खामोश मेघों का भरा मन
फूट पड़ता है !
तुम सुन रहे हो ना,
मुझे कुछ बताना है तुम्हे....

वह फुलचुही चिड़िया
फिर आई थी फूलों पर !
बुलबुल ने मुँडेर से ही
'हैलो' कह दिया था !
कबूतरों का जोड़ा बारबार
मँडरा रहा था बालकनी में
घरौंदा बनाने की फिराक में

और हाँ,आजकल आ रही है
एक नई मेहमान भी !
चिकचिक करती गिलहरी!
चिड़ा चिड़िया रोज आते हैं
बच्चों को साथ लेकर !

सांझ पड़े, दूर आसमां में
बगुलों को उड़ते देख
मन उड़ने को होता है !
वो तांबई भूरे पंखों वाली
कोयल रोज बैठती है
सामने के पेड़ पर खामोश !
गाती क्यों नहीं ?
क्या गाने का मौसम
नहीं है यह ?

याद है तुम्हें, तुमने कहा था...
तुम्हारी अच्छी रचनाएँ
उभरती हैं हमारे झगड़े के बाद !
ये कैसी है ?
और कहा था तुमने....
"तुम्हें संवाद करना नहीं आता,
प्रेमपत्र क्या खाक लिखोगी ?"
ये कैसा है ?

तुम सुन रहे हो ना ?
मुझे और भी बहुत कुछ
कहना है, बताना है !!!
पर....





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