सुरमई पलकों में सपने,
बुन गई फिर रात,
चुपके से बातें हमारी
सुन गई फिर रात
बाग के हरएक बूटे पर
बिछी कुछ इस तरह,
बाग के हरएक बूटे पर
बिछी कुछ इस तरह,
शबनमी बूँदों में भीगी
नम हुई फिर रात...
रातरानी की महक से
रातरानी की महक से
फिर हवा बौरा गई,
इक गजल महकी हुई सी
लिख गई फिर रात...
सरसराहट पत्तियों की,
सरसराहट पत्तियों की,
कह गई हौले से कुछ,
फिर हुई कदमों की आहट,
रुक गई फिर रात...
मेरी निंदिया को चुराकर,
मेरी निंदिया को चुराकर,
साथ अपने ले गई,
कौन जाने दूर कितनी,
रह गई फिर रात...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 18 नवंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंविरह की रात
जवाब देंहटाएंन बीतने की रात
न बदली कोई बात
प्रकृति के कारनामे
हैं ज्यों के त्यों तमाम।
सांसे हैं, हम हैं
मगर कहाँ वो बात
बिन तेरे खाये ये रात।
सुंदर।
बेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना।
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