रविवार, 7 मई 2017

कायरता

*कायरता*

यही तो कर्मभूमि है
इसे तजना है कायरता,
समझ लो युद्धभूमि है,
इसे तजना है कायरता।।
यही तो कर्मभूमि है....

कभी तलवार भी तुमको,
उठानी हाथ में होगी,
हमेशा फूल से नाजुक,
बने रहना है कायरता।।
यही तो कर्मभूमि है....

नहीं होगा हमेशा ही,
यहाँ मौसम बहारों का,
बढ़ो, तूफान झंझा में,
रुके रहना है कायरता।।
यही तो कर्मभूमि है....

गलीचे मखमली,कलियाँ,
नर्म फूलों की पंखुड़ियाँ,
नहीं कदमों तले हों, तो
सफर तजना है कायरता।।
यही तो कर्मभूमि है....

समर में कूद जाओ तो,

लड़ो फिर जंग आखिर तक,
अधर में छोड़कर रण को,
पलट जाना है कायरता।।
यही तो कर्मभूमि है....

कहो तुम बात अपनी भी,
सुनो तुम बात भी सबकी,
मगर हर बात पर 'हाँ जी'
कहे जाना है कायरता।।
यही तो कर्मभूमि है....

करो तुम श्रेष्ठतम अभिनय,
जगत की रंगभूमि में,
प्रदर्शित भाव में बहकर,
भटक जाना है कायरता ।।
यही तो कर्मभूमि है.....

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 08 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह! इन पंक्तियों में गीता जी अनुगूँज सुनाई दे रही है। बहुत सुंदर भावों से परिपूर्ण अद्भुत रचना!

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