एक प्रश्न..
मई का महीना बहुत कम लोगों को पसंद आता है अपनी तेज जलाने वाली धूप और गर्मी के कारण लेकिन दो प्रजातियाँ ऐसी भी हैं जो इस महीने का इंतजार साल भर करती हैं --
जी हाँ ! सही समझा आपने ।
शिक्षक और विद्यार्थी .... और
इनमें से एक प्रजाति में मेरा समावेश होता है ।
मई की अलसाई दोपहर में चिड़ियों के प्याले में पानी भरने मैं अपनी बालकनी में पहुँची तो सहसा नीचे नज़र चली गई । एक सात-आठ साल की लड़की नंगे पैर उस जलती सड़क पर जा रही थी । इक्का दुक्का लोग और भी थे। लेकिन सब मानो जल्दी में थे । मैंने आवाज देकर लड़की को रोका,
"सुनो, इधर देखो, ऊपर ।" उसने सुना और ऊपर देखा । मैंने कहा , "कहाँ रहती हो?"
उत्तर मिला,"सामने।"
मैं समझ गई। सड़क के उस पार मैदान में कुछ झुग्गियाँ थी सड़क बनाने वाले मजदूरों की। मैंने अपने पैरों में पहनी हुई चप्पलें नीचे फेंक दी । उसने तुरंत चप्पलें पैरों में डाल ली । मुझे संतोष हुआ ।
अगले दिन दोपहर एक बजे के करीब मैं एक रिश्तेदार के घर से लौट रही थी । वही लड़की फिर सामने। बगल में पानी का कलसा दबाए, नंगे पैर। "अरे ! कल मैंने जो चप्पलें दी थीं वो क्यों नहीं पहनी? पैर जलते नहीं क्या तुम्हारे ? कहाँ गई चप्पलें?" मैंने एक साथ कई प्रश्न दाग दिए ।
"चुड़ैल के पास ।" जवाब मिला.
उन भोली आँखों में डर का साया नजर आया ।
"चुड़ैल के पास ?
तुम्हे कैसे मालूम ?"
मैं कुछ समझ नहीं पाई ।
"हाँ, आज सुबह माँ बापू से कह रही थी
'दे आया उस चुड़ैल को नई चप्पलें' ।
दो दिन पहले माँ को साड़ी दी थी मालकिन ने, वो भी चुड़ैल को दे दी थी बापू ने ।"
"अच्छा, तुम कल सुबह यहीं मिलना, मैं तुम्हारे नाप की चप्पलें ला दूँगी।" वह सिर हिलाकर आगे बढ़ गई और एक सवाल छोड़ गई मेरे सामने ....
कब तक औरत ही औरत की दुश्मन बनती रहेगी ?
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