तन का जब सौंदर्य रहे ना,
ना ही मन का यौक्न !
मूक, चहकती चंचल चिड़िया
ताके सूखा उपवन ।
हृदय तुम्हारा तब भी होगा
क्या आतुर मिलने को ?
बीते बरबस, बरस संग के
रह गए दिवस गिनने को !
ना जाने क्यूँ बात - बात पर
भर आती हैं आँखें,
यादों के पंछी इस आँगन
गिरा गए फिर पांखें !
उतरेंगे वे बाग तुम्हारे
कल दाने चुगने को ।
बीते बरबस, बरस संग के
रह गए दिवस गिनने को !
कहीं दूर पर दीप नेह का
टिमटिम कर जलता है,
प्रेम, परीक्षा देने से कब
घबराता, टलता है ?
थके हुए कदमों से भी
तत्पर हूँ मैं चलने को ,
बीते बरबस, बरस संग के
रह गए दिवस गिनने को !
जब मौसम मधुऋतु लेकर
लौटेगा, पुनः मिलेंगे !
हाथ तुम्हारा थामे, तब
जीवनभर संग चलेंगे।
अब जितना भी निभा सके,
उतने में खुश हो लेना,
रूठ ना जाना, छुपकर हमसे
तुम प्रतिशोध ना लेना।
वृक्ष गिराता पत्र पुराने
नव पल्लव उगने को !
बीते बरबस, बरस संग के
रह गए दिवस गिनने को !
कहीं दूर पर दीप नेह का
जवाब देंहटाएंटिमटिम कर जलता है,
प्रेम, परीक्षा देने से कब
घबराता, टलता है ?
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना मीना जी !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 मई 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय भी शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंशब्द शब्द मन में उतरता सुंदर सार्थक गीत।
जवाब देंहटाएंअनुपम
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंअहा ! बहुत ही अप्रतिम सरस एवं मनमोहक सृजन ।
जवाब देंहटाएंअब जितना भी निभा सके,
उतने में खुश हो लेना,
रूठ ना जाना, छुपकर हमसे
तुम प्रतिशोध ना लेना।
लाजवाब...👌👌..
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रिय सुधा जी के अहा! के साथ उनके सुर में सुर मिलाने को जी चाहता है प्रिय मीना! ये मन भी कितना पागल है ना! कितना आसान समझता है सब कुछ! पर जीवन की कथित अदृश्य मर्यादाओं के समानांतर किसी और के कामना की गुंजाईश है भला! फिर भी बड़ा सरस और कहीं ना कहीं हृदय की निर्मल कामनाओं के निर्झर सा बहता हुआ है मन का ये संवाद! एक बहुत ही प्यारी रचना के लिए शुभकामनाएं और बधाई ❤
जवाब देंहटाएंजब मौसम मधुऋतु लेकर
जवाब देंहटाएंलौटेगा, पुनः मिलेंगे !
हाथ तुम्हारा थामे, तब
जीवनभर संग चलेंगे।
अब जितना भी निभा सके,
उतने में खुश हो लेना,
रूठ ना जाना, छुपकर हमसे
तुम प्रतिशोध ना लेना।
वृक्ष गिराता पत्र पुराने
नव पल्लव उगने को !
बीते बरबस, बरस संग के
रह गए दिवस गिनने को !///
👌👌👌👌🙏❤
निशब्द हूँ मीना जी यह रचना पढ़ कर । बहुत ख़ूब !! लाजवाब ! बेहतरीन! ! अति सुन्दर! सब प्रशसाओं का पुष्प गुच्छ समर्पित इस रचना को 💐
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