हजारों दफा टूट कर मैं जुड़ी हूँ !
जुड़ी तो जुड़ी, जोड़ती भी रही जो,
विधाता के द्वारा गढ़ी, वह कड़ी हूँ !
उन्हें तुम सँभालो,जो हैं नर्म-ओ-नाजुक
उन्हें प्यार दो, जो हैं झोली पसारे !
अगर मेरे दिल ने गलत कुछ किया है,
तो उसको कोई दूसरा क्यूँ सँभाले ?
नहीं दोष इसमें किसी का भी कोई
मैं सब छोड़, जाने कहाँ को मुड़ी हूँ !
ये हैं किस जनम के, बँधे कर्मबंधन
मेरी रूह ने कब लिए थे वो फेरे ?
मैं बेचैन, पागल, फिरी खोज में, पर
कदम-दर-कदम थे अँधेरे, घनेरे !
किसी मोह की डोर में यूँ उलझकर
न फिर लौट पाई, ना आगे बढ़ी हूँ !
है ख्वाहिश, तुम्हें वह मिले तुम जो चाहो,
पहुँचती रहें तुम तलक सब दुआएँ !
सुकूँ-चैन, खुशियों की हो तुम पे बारिश,
मैं लेती रहूँ सब तुम्हारी बलाएँ !
कभी हो समय तो नज़र डाल लेना,
मैं सदियों से संग में तुम्हारे खड़ी हूँ !
बहुत बढ़िया प्रिय मीना! खुद टूटने पर भी कभी न बिखरने और दूसरों को सदैव ही जोड़ने की अद्भुत कला ईश्वर ने सिर्फ नारी को दी है! उस पर बिना शर्त सर्वस्व समर्पण उससे बेहतर कौन जान सकता है! एक बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति! बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु, आज अपनी अनेक रचनाओं पर आपकी टिप्पणियाँ देखकर मन भावविभोर हो गया ! आप रचनाओं का मर्म समझनेवाले और रचयिता का उत्साहवर्धन करनेवाले पाठकों में से हैं .... बहुत सारा स्नेह एवं आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 26 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी, मैं अवश्य आऊँगी.
हटाएंसादर धन्यवाद |
बहुत बहुत सुन्दर मार्मिक हृदय स्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय आलोक सिन्हा सर, सादर प्रणाम|
हटाएंइस स्नेह के लिए आभार एवं धन्यवाद शब्द छोटे पड़ जाते हैं |
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंआपको भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई , सादर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद अनिता जी.
हटाएंनारी
जवाब देंहटाएंनारी की विशिष्टताओं का विनम्र वर्णन....बहुच सुंदर।
जवाब देंहटाएंमेर् नाम से टिप्पणी नहीं हो पा रही है
अयंगर।
सादर धन्यवाद आदरणीय अयंगर सर.
हटाएंकभी हो समय तो नज़र डाल लेना,
जवाब देंहटाएंमैं सदियों से संग में तुम्हारे खड़ी हूँ !
दुःख तो यही हैकि हर पल साथ होने के वावजूद हमारा ही वजूद अनदेखा किया जाता है, मीना जी आपकी रचनाएं तो अन्तर्मन को गहरे छू जाती है,सादर 🙏
प्रिय कामिनी, आपको रचना पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा, बहुत सारा स्नेह एवं आभार !
हटाएंChecking if comment can be posted from laxmirangam mail
जवाब देंहटाएंChecking.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक और मर्मस्पर्शी उद्गार ।शुभेच्छा सम्पन्न हृदय सदैव सब का हित चिन्तक होता है भले ही स्वयं को कितने ही कष्ट क्यों न हो ? सृजन के भाव मन के बहुत क़रीब लगे ।स्नेहिल नमस्कार मीना जी !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी
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