रविवार, 30 जुलाई 2023

शिकायत

इसे मान लो चाहे बगावत हमारी
कि तुमसे ही करनी है शिकायत तुम्हारी।

मुहब्बत अगर तुमसे निभाई है हमने
तो नाराजगी भी है अमानत तुम्हारी ।

कभी ना कहा  'प्यार करते हैं तुमसे '
हमेशा ही की है खिलाफत हमारी ।

ये अहसान मानो, छिपा करके दिल में
करी है हमीं ने हिफाजत तुम्हारी ।

मेरी नाखुशी पर क्यूँ तुम मुस्कुराए
अभी भी ना बदली है आदत तुम्हारी ।

हँसाकर रुलाना, सताकर मनाना,
कोई क्यूँ सहे हर शरारत तुम्हारी ?

नहीं अब भरोसा, है हर बात नकली
मिलावट, मिलावट, मिलावट है सारी ।


20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर शिकायत भरी पंक्तियाँ और अल्फा जय
    सुंदर प्रस्तुति

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (30-07-2023) को   "रह गयी अब मेजबानी है"    (चर्चा अंक-4674))   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 31 जुलाई 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  4. प्रेम की नोक-झोंक पर सुंदर रचना

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  5. वाह बहुत ही सुन्दर, भावपूर्ण रचना

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  6. शानदार कव‍िता...वाह मीना जी

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  7. 'नहीं अब भरोसा, है हर बात नकली
    मिलावट, मिलावट, मिलावट है सारी।' ... वाह, क्या खूब कहा है!

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  8. नारी हृदय की पुरुष के लिये उदार करुण और स्नेहमयी गाथा .

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