इसे मान लो चाहे बगावत हमारी
कि तुमसे ही करनी है शिकायत तुम्हारी।
मुहब्बत अगर तुमसे निभाई है हमने
तो नाराजगी भी है अमानत तुम्हारी ।
कभी ना कहा 'प्यार करते हैं तुमसे '
हमेशा ही की है खिलाफत हमारी ।
ये अहसान मानो, छिपा करके दिल में
करी है हमीं ने हिफाजत तुम्हारी ।
मेरी नाखुशी पर क्यूँ तुम मुस्कुराए
अभी भी ना बदली है आदत तुम्हारी ।
हँसाकर रुलाना, सताकर मनाना,
कोई क्यूँ सहे हर शरारत तुम्हारी ?
कोई क्यूँ सहे हर शरारत तुम्हारी ?
नहीं अब भरोसा, है हर बात नकली
मिलावट, मिलावट, मिलावट है सारी ।
बहुत सुंदर शिकायत भरी पंक्तियाँ और अल्फा जय
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
सादर आभार आदरणीय अयंगर सर
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (30-07-2023) को "रह गयी अब मेजबानी है" (चर्चा अंक-4674)) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय नितीश जी
हटाएंक्या बात है...
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया रूपा जी
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 31 जुलाई 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी
हटाएंप्रेम की नोक-झोंक पर सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी
हटाएंवाह बहुत ही सुन्दर, भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया अभिलाषा जी
हटाएंशानदार कविता...वाह मीना जी
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया अलकनंदा जी
हटाएं'नहीं अब भरोसा, है हर बात नकली
जवाब देंहटाएंमिलावट, मिलावट, मिलावट है सारी।' ... वाह, क्या खूब कहा है!
सादर आभार आदरणीय गजेंद्र जी
हटाएंनारी हृदय की पुरुष के लिये उदार करुण और स्नेहमयी गाथा .
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया दीदी
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