याद करने के लिए कोई निशानी ढूँढ़ते हो,
और जीने के लिए गुजरी जवानी ढूँढ़ते हो,
भूल से भी भूल ना पाया तुम्हें जो,
तुम खतों में क्यों भला उसकी कहानी ढूँढते हो ?
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टाल दे जब बात को दीवानगी की,
छोड़ दे जब जिद कोई करना किसी से,
तब जरा सा झाँक लेना, पार पलकों के मुँदीं जो,
चल रहे होंगे वहाँ चलचित्र उस गुजरे समय के।
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बूझ लेना गूढ़तम भाषा मेरी अभिव्यक्तियों की,
और भावों की गहनतम तलहटी में उतर जाना ।
जो लगे मन के निकट, उस गीत को साथी बनाकर
सोच का जो उच्चतम होगा, शिखर वह खोज लेना ।
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नियति के बहुरुपिए के और कितने रुप बाकी,
छाँव कितनी भाग्य में है और कितनी धूप बाकी,
वक्त गर साँसों के धागों को उलझने से बचाता,
उम्र के टुकडों को सीकर एक चादर मैं बनाती ।
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और क्या दे पाएगा तुमको भला यह मन फकीरी,
बस दुआओं में बसी है हम फकीरों की अमीरी,
शब्दकोशों में कहाँ इस अर्थ को तुम पा सकोगे,
प्रार्थनाएँ सब मेरी हैं प्रेम की पर्यायवाची !
शब्दकोशों में कहाँ इस अर्थ को तुम पा सकोगे,
जवाब देंहटाएंप्रार्थनाएँ सब मेरी हैं प्रेम की पर्यायवाची !
अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति मीना जी ! आपकी रचनाएँ पढ़ना सुखद अनुभूति है । सादर सस्नेह वन्दे ।
सादर आभार मीना जी
हटाएंजो लगे मन के निकट, उस गीत को साथी बनाकर
जवाब देंहटाएंसोच का जो उच्चतम होगा, शिखर वह खोज लेना ।वाह! विचारों के शिखर तक पहुँचाने का भरोसा दिलाती सुंदर रचना!
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया अनिताजी
हटाएंहृदयस्पर्शी प्रार्थना,मन को छूती अभिव्यक्ति दी।
जवाब देंहटाएंसादर
सस्नेह।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सस्नेह धन्यवाद प्रिय श्वेता
हटाएंप्रार्थनाएँ सब मेरी हैं प्रेम की पर्यायवाची
जवाब देंहटाएं-सुन्दर लेखन
सादर धन्यवाद आदरणीया विभा दीदी
हटाएंसुन्दर लेखन,शब्द शब्द हृदय को छू जाते है ।
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद उर्मिलाजी
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंप्रिय मीना,अर्से बाद यहाँ आई और ये शानदार प्रस्तुति देखी।मन जाने कैसा- कैसा हो आया।हर चार पंक्तियाँ अपने आप में परिपूर्ण हैं।प्रेम को अभिव्यक्त करने के जितने प्रयास हुये हैं कम पडे हैं।सच है जहाँ प्रेम है वहीं प्रार्थना अनायास जुड जाती है।प्रेम बिना प्रार्थना के सम्भव कहाँ है।ये एक पीर है जीवन की जिसका मरहम प्रार्थना है।जो प्रेम में अमीर है वो मन का फकीर है।कुछ दुआएँ और प्रियतम संग कुछ पलों का साथ उसकी अनमोल पूँजी है।शेष सब दिवा स्वप्न मात्र हैं ।उम्र के टुकड़ों को सीकर कोई चादर कभी ना बन पाई और ना कोई अभिव्यक्ति की गूढता को समझ पाने में सक्षम हुआ है।मार्मिक भावों से सजी रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं प्रिय मीना।अब लौट आओ ब्लॉग पर।मैं भी कोशिश कर रही हूँ।♥️🌹
जवाब देंहटाएंभूल से भी भूल ना पाया तुम्हें जो,
जवाब देंहटाएंतुम खतों में क्यों भला उसकी कहानी ढूँढते हो ?
वाह वाह!!!!
कमाल का सृजन मीनाजी, क्या कहूँ निःशब्द हूँ आपके इन अद्भुत भावों की गहनतम तलहटी में उतरकर ।
दुआओं में बसी हम फकीरों की अमीरी
क्या बात...👏👏👏👏
बस लाजवाब 👌👌👌
सही कहा रेणुजी ने आ जाओ ! यही निवेदन है मेरा भी आपसे और रेणु जी से भी कि आ जाओ ! आ भी जाओ ...
अत्यंत उत्कृष्ट सृजन हेतु बधाई आपको ।
सभी क्षणिकाएं प्रशंसनीय हैं, हृदयस्पर्शी हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर तरीके से आपने भावनाओं को शब्दों सा जामा पहनाया है। शिल्प उत्कृष्ट है। पता नहीं आप ब्लॉग से दूर क्यों हैं। सृजन कीकला को जीवंत रथिए, मारिए मत इसका गला मत घोंटिए।
जवाब देंहटाएंमन को छूती हुई है आपकी अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंआप सभी का हृदयपूर्वक हार्दिक धन्यवाद जो आपने अपना कीमती समय निकालकर रचना को पढ़ा और सराहा भी....
जवाब देंहटाएंनिश्छल प्रेम का बहुत सुन्दर भावपूर्ण गीत !
जवाब देंहटाएंसुंदर! मन को छूती रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर मधुर और प्रशंसनीय। हृदय से शुभ कामनाएं।
जवाब देंहटाएंदिल को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, मीना दी। बहुत ही कमाल का सृजन।
जवाब देंहटाएंदिल को छूती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, मीना दी। बहुत ही कमाल का सृजन। गलती से नाम नही आ पाया था। इसलिए दोबारा कॉमेंट किया।
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