माघ की मरमरी ठंड को ओढ़कर,
धूप निकली सुबह ही सुबह सैर पर,
छूट सूरज की बाँहों से भागी, मगर
टूटे दर्पण-सी बिखरी इधर, कुछ उधर !
सूखे पत्तों पे कुछ पल पसरती रही,
धूप पेड़ों से नीचे फिसलती रही,
धूप थम-थम के बढ़ती रही दो पहर,
मिल के पगली पवन से सिहरती रही !
चाय की प्यालियों में खनकती रही,
गुड़ की डलियों में घुलकर पिघलती रही
खींचकर जब रजाई, उठाती है माँ,
धूप चादर में घुस कुनमुनाती रही !
गुनगुनी - गुनगुनी धूप उतरी शिखर,
स्वर्ण आभा से पर्वत को नहला गई,
नर्म गालों को फूलों के, सहला गई,
बस अभी आ रही, कह के बहला गई !
जिद की खेतों ने, 'रुक जाओ ना रात भर'
धूप अँखियों से उनको डपटती रही !
कुछ अटकती रही, कुछ भटकती रही,
हर कहीं थोड़ा - थोड़ा टपकती रही !
घास का मखमली जब बिछौना मिला,
खेलने को कोई मृग का छौना मिला,
साँझ आने से पहले ही वह खो गई,
बँध के सूरज की बाँहों में वह सो गई !
सुंदर वर्णन शीत मैं धूप का।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 23 ,जनवरी 2023 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति। शब्द नहीं है प्रशंसा के लिए।
जवाब देंहटाएं~संचिता
अद्भुत बिंब!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंखूबसूरत पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब पंक्तियां!! शीत ऋतु में धूप की सुंदर व्याख्या।
जवाब देंहटाएंचाय की प्यालियों में खनकती रही,
जवाब देंहटाएंगुड़ की डलियों में घुलकर पिघलती रही
खींचकर जब रजाई, उठाती है माँ,
धूप चादर में घुस कुनमुनाती रही !
सर्दियों की धूप और उसके नाना प्रकार के रंगों का अनुपम चित्रण मीना जी ! अत्यंत सुन्दर सृजन ।
वाह! धूप की अठखेलियाँ आपके शब्दों में सजीव हो उठी हैं, सुंदर बिंबों से सजी रचना!
जवाब देंहटाएंक्या बात,बहुत खूब दी कितना सुंदर लिखा है आपने रचना पढ़कर होंठों पर मुस्कान आ गयी।
जवाब देंहटाएंहर पहर के धूप के रूप का मनमोहक चित्रण।
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धूप की उंगलियों ने
छू लिया अलसाया तन
सर्द हवाओं की शरारतों से
तितली-सा फुदका मन
सस्नेह प्रणाम दी।
सादर।
माघ की मरमरी ठंड को ओढ़कर,
जवाब देंहटाएंधूप निकली सुबह ही सुबह सैर पर,
सुबह की सैर पर निकली धूप
वाह!!!
साँझ आने से पहले ही वह खो गई,
बँध के सूरज की बाँहों में वह सो गई !
पूरी धरती का भ्रमण
क्या बात...
बहुत ही लाजवाब ।
माघ के आगमन को बाखूबी लिखा है ... ठण्ड अभी भी बिस्तर में है पर मौसम माघ का दोनों का मजा देता है ...
जवाब देंहटाएंमाघ की मरमरी ठंड को ओढ़कर,
जवाब देंहटाएंधूप निकली सुबह ही सुबह सैर पर,
छूट सूरज की बाँहों से भागी, मगर
टूटे दर्पण-सी बिखरी इधर, कुछ उधर !
निशब्द हूं, सर्दियों की धूप सी मनोहारी सृजन मीना जी, 🙏
सर्दियों की धूप का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने, मीना दी।
जवाब देंहटाएंआदरणीया मैम, सादर प्रणाम। आज बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ। इतनी प्यारी सी रचना पढ़ कर आनंद आ गया म सरदो को धूप का इतना प्यारा मनोरम वर्णन पढ़ते ही होठों पर मुस्कान आ जाती है। यह कविता बच्चों के हिंदी पाठ्यपुस्तक का हिस्सा होनो चाहिए, अहित रोटू के शॉप की उतनी सुंदर कल्पना बच्चों को भी और कल्पनात्मक होने मविन सहायता करेगी। पुनः प्रणाम।
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंशानदार रचना है...खूब बधाई। कृपया प्रकृति दर्शन के इस ब्लॉग को फालो कीजिएगा।
जवाब देंहटाएंआप सभी का हृदयपूर्वक हार्दिक धन्यवाद जो आपने अपना कीमती समय निकालकर रचना को पढ़ा और सराहा भी....
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