शनिवार, 30 अप्रैल 2022

हुड़दंग मत करो भई !

रंग मेरे बजरंग का 

बदरंग मत करो भई,

हनुमानजी के नाम पर 

हुड़दंग मत करो भई !!!


है अगर लड़ना तुम्हें

आतंकियों से तुम लड़ो

है अगर पढ़ना, तो पाठ 

प्रेमभाव का पढ़ो ।


मारुती को मत बनाओ 

तुम कभी बिचौलिया,

मानस में हैं बसे हुए 

भगवान राम औ' सिया ।


तुच्छ कार्य के लिए 

उपयोग ना उनका करो,

वीर के गुणगान का 

तुम यूँ निरादर ना करो।


तुलसी की मंजरी का 

दुरुपयोग मत करो भई !

हनुमानजी के नाम पर 

हुड़दंग मत करो भई !!!


रामबोला के हृदय की 

बेल जब फूली रही,

तब पवनसुत की कृपा से 

चालीसा सृजन भई ।


तुम चले अमृत कलश को 

रास्तों पर छींटने,

मोती मेरे तुलसी की 

माल के, चले बिखेरने ।


एक एक अक्षर है जिसका,

शक्तिमान बीज मंत्र !

कर रहे अपमान उसका 

कैसा है ये राजतंत्र ?


हनुमंत की स्तुति जरा 

हनुमंत को सुनाइए,

मन के कलुष धुल जाएँ

यदि राम को सुनाइए ।


गाने हैं गर विरोध में तो 

फिल्मी गीत गाइए,

बेहतर तो यही है कि 

बात प्यार से सुलझाइए।


पर... गीत रामदूत का 

बेढ़ंग मत पढ़ो भई।

हनुमानजी के नाम पर 

हुड़दंग मत करो भई !!!


रंग मेरे बजरंग का 

बदरंग मत करो भई

हनुमानजी के नाम पर 

हुड़दंग मत करो भई !!!

    किसी भी राजनीतिक गतिविधि से इस कविता का कोई लेना देना नहीं है। बचपन से ही हनुमान चालीसा का पाठ घर में करते और सुनते आए हैं और उसके प्रति मन में अपार सम्मान तथा श्रद्धा है जिसको यहाँ मैने अभिव्यक्त किया । महाकवि तुलसीदास जी की यह रचना सदैव ही मन में श्रद्धा एवं शक्ति का संचार करती रही है। 

 

15 टिप्‍पणियां:

  1. हनुमान चालीसा के निरादर न करें। सही, सही ढंग, समय से पढ़ने की हिदायत देती प्रेरक रचना। इसके दुरुप्रयोग को नकारती रचना।
    भगवान के नाम पर राजनीति न करने का भी विनम्र आग्रह।

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  2. पर... गीत रामदूत का

    बेढ़ंग मत पढ़ो भई।

    हनुमानजी के नाम पर

    हुड़दंग मत करो भई !!!
    बहुत सटीक जवं सामयिक सृजन
    धर्म और भगवान की आड़ में लड़ना उचित नहीं ...लड़ना हैं आतंकवादियों से लड़ें...
    लाजवाब सृजन।

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  3. रंग मेरे बजरंग का

    बदरंग मत करो भई

    हनुमानजी के नाम पर


    हुड़दंग मत करो भई !!!
    काश, ये बात हुड़दंगियों को समझ मे आ जाए।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. प्रिय मीना, वीर बजरंगी के नाम पर जो अराजकता हुई वह गंगा- ज़मनी तहज़ीब की भूमि पर एक धब्बा है।मारुतिनंदन भारतीय जनमानस में बसे हुये हैं।हनुमान चालिसा से सदैव आपसी सौहार्द में वृद्धि हुई है ,इसे कुत्सित राजनीति के लिए प्रयोग किया जाना संकेत है कि ज़रूर कुछ दहशत पसंद लोगों ने दहशत फैलाने के लिए ही इसे चुना है। आपने बहुत विनम्रता पूर्वक खरे भावों को सजाया है इस सरल और सहज अभिव्यक्ति में।निश्चित रूप से आज के कथित सभ्य और शिक्षित समाज को धर्म के नाम पर राजनीति से बचना चाहिए क्योंकि आज समय धर्म के नाम पर लड़ने का नहीं बल्कि विभिन्न समस्याओं पर चिन्तन करने का है, ताकि आपसी सूझबूझसे इन से निज़ात पाई जा सके।काश! हुडदंग
    मचाने वाले मानवता का मोल जान सकें जिसके लिए वीर बजरंगी जाने जाते हैं।

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  6. है अगर लड़ना तुम्हें,
    आतंकियों से तुम लड़ो
    है अगर पढ़ना, तो पाठ
    प्रेमभाव का पढ़ो ।
    बहुत सुन्दर बात कही मीना जी ।

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  7. मीना जी, आपका सन्देश पढ़ कर हमारे उन राम-भक्तों की, हनुमान-भक्तों की, छातियों पर सांप लोटने लगे हैं जिनका कि धंधा ही धार्मिक-फ़साद खड़े कर के अपनी रोज़ी-रोटी कमाना है.
    वैसे ऐसे मासूमों के मुंह से कौर छीनना कोई अच्छी बात नहीं है.
    'राम-नाम की लूट है' की तर्ज़ पर अब अगर - 'हनुमान-नाम की लूट है' वाला फ़ॉर्मूला भी हिट हो रहा है तो इसमें क्या हर्ज़ है?

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  8. गाने हैं गर विरोध में तो

    फिल्मी गीत गाइए,

    बेहतर तो यही है कि

    बात प्यार से सुलझाइए।


    बिलकुल सही कहा आपने,लड़ाई ना ही अली के नाम पर अच्छी है ना बलि के नाम पर,ना ही धर्म के नाम पर मनमानी करने का ही किसी को हक है।
    धर्म के नाम पर लड़ने वाले जानते ही नहीं कि -असली धर्म तो प्रेम और सद्भावना है। लाज़बाब सृजन आदरणीय मीना जी,सादर

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  9. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (3-5-22) को "हुई मन्नत सभी पूरी, ईद का चाँद आया है" (चर्चा अंक 4419) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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  10. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  11. वाह!गज़ब कहा दी 👌
    हमेशा की तरह।
    सादर

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  12. साँस-साँस बास मेरे,
    सुत पवन प्राण दें।
    अधि दैहिक,दैविक,भौतिक
    कष्ट से वह त्राण दें।
    शब्दों की इस मीनाकारी,
    में बसे बजरंग हैं।
    अंग-अंग अध्यात्म के
    उकेरे अगणित रंग हैं।

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  13. काश लोग समझना सीखते और देश के विकास से पहले अपना विकास करना सीखते

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  14. मेरी रचना पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों के रूप में आप सबने अपना स्नेह और आशीष बरसाया, इसके लिए मैं आप सबकी अत्यंत आभारी हूँ।

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