शनिवार, 29 जनवरी 2022

भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं

इस धरा पर तो मधुमास फिर छा गया,

किंतु पतझड़ मेरे मन की वासी हुई ।

शब्द परदेस में जाके सब बस गए,

भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं ।। 


जिसके प्रतिनाद की थी प्रतीक्षा मुझे,

मन की घाटी से वह गीत गुजरा नहीं ।

रोक लेना जिसे, मेरा अधिकार था,

कुछ क्षणों को भी वह भाव ठहरा नहीं ।

राह तक ना सकी उसकी प्रतिबद्धता,

मेरे आने में देरी जरा - सी हुई ।।

शब्द परदेस में जाके सब बस गए

भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं ।। 


सुख की मैंने कभी, खोज ना की कहीं,

वेदना से मेरा प्रेम शाश्वत रहा।

जिसको पाना असंभव, वही चाह थी,

मेरी चाहत का हर अंक अद्भुत रहा।

खिलखिलाहट सजाती रही मंच को,

कैद परदों के भीतर उदासी हुई ।।

शब्द परदेस में जाके सब बस गए

भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं ।। 


जीविका का नहीं, प्रश्न जीने का था,

खोज जीवन की हर श्वास जारी रही ।

एक टुकड़ा भी जीवन का दे ना सकी,

ज़िंदगी, ज़िंदगीभर भिखारी रही।

कोष श्वासों का भी, यूँ ही लुटता गया,

कुछ मिला ही नहीं, जब तलाशी हुई ।।

शब्द परदेस में जाके सब बस गए

भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं ।।

               ©  - मीना शर्मा 















39 टिप्‍पणियां:

  1. खिलखिलाहट सजाती रही मंच को,
    कैद परदों के भीतर उदासी हुई ।।
    शब्द परदेस में जाके सब बस गए
    भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं ।।
    ----
    काफी दिनों आपकी लेखनी से फूटा यह अत्यंत भावपूर्ण
    सृजन पढ़कर भाव विह्वल हो गयी।
    क्या कहूँ दी रचना के भाव मन भींगा गये।
    उत्कृष्ट रचना दी।
    सस्नेह प्रणाम,
    सादर।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 30 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. बहुत सुन्दर मीना जी !
    वास्तव में हम सब कहीं न कहीं प्रवासी बन कर ही जी रहे हैं.

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-1-22) को "भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं" (चर्चा अंक 4326)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  5. सुख की मैंने कभी, खोज ना की कहीं,
    वेदना से मेरा प्रेम शाश्वत रहा।
    जिसको पाना असंभव, वही चाह थी,
    मेरी चाहत का हर अंक अद्भुत रहा।
    खिलखिलाहट सजाती रही मंच को,
    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति प्रिय मीना। जीवनपथ पर निरंतर अग्रसर व्यक्ति कहीं न कहीं निढ़ाल हो कर ये सब सोचता जरूर है। अक्सर यही नियति है हर इन्सान की, जिधर परिस्थितियां ले जाए उधर ही चलता रहता है। एक अप्राप्य से अनुराग की धुन लिए मन कहां ये समझ पाता है कि प्रेम और वेदना एक दूसरे के पर्याय हैं। उद्विग्न हृदय की कोमल भावनाओं को बहुत सुंदर शब्दों में बांध एक और अनमोल रचना की सृजना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। अपनी लेखनी को अविराम रखो। खूब आराम कर लिया इसने। हार्दिक स्नेह के साथ ❤️❤️🌷🌷

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    1. इतनी सुंदर टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया प्रिय रेणु। बहुत सारा स्नेह ।

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  6. शायद लेखन जगत से आपकी अनुपस्थिति क सविस्तार कारण बताती है आपकी यह रचना।

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    1. लिखनेवालों में यही तो खराबी होती है ना सर,
      खुद ही अपने राज खोल देते हैं !
      आपकी उपस्थिति से बहुत खुशी हुई। सादर आभार !

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. अभी तक तो लोग ही प्रवासी होते थे , आपके तो शब्द ही प्रवासी हो गए । और सबसे मजेदार बात कि प्रवासी हो कर मन के भावों को भी कह रहे । तो सीधी सच्ची बात ये कि प्रवासी नहीं हुए थे ,मन की गहराई में छुपे बैठे थे ।
    और तलाशी में शब्द मिल गए हैं । खूबसूरती से प्रस्तुत कर दिया लेखा जोखा ।
    लिखती रहिये ।

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    1. ये हुई ना बात !!! तलाशी में शब्द मिल गए। आप जैसे लोग मिलते हैं ना ब्लॉग पर दी, तो शब्द भी अपने देस को लौटने को मजबूर हो जाते हैं।
      बहुत सारा प्यार व आभार आदरणीया संगीता दीदी।

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  10. आपके लेखन की सरलता हृदय में उतर जाती है हर बंद सराहनीय आदरणीय मीना दी जी।
    सादर स्नेह

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  11. बहुत बहुत सुन्दर सुगठित गीत । बहुत बहुत शुभ कामनाएं आशीष

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  12. आदरणीया मीना शर्मा जी, बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति!
    शब्दों का सुंदर समायोजन, दार्शनिक अर्थ समेटे रहस्यवाद !
    सुख की मैंने कभी, खोज ना की कहीं,
    वेदना से मेरा प्रेम शाश्वत रहा।
    जिसको पाना असंभव, वही चाह थी,
    मेरी चाहत का हर अंक अद्भुत रहा।
    खिलखिलाहट सजाती रही मंच को,
    कैद परदों के भीतर उदासी हुई ।।
    शब्द परदेस में जाके सब बस गए
    भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं ।।
    साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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    1. आदरणीय ब्रजेंद्रनाथ जी, बहुत उत्साहवर्धन किया आपके शब्दों ने, सादर धन्यवाद।

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  13. वाह ! मन की उदासी को भी इतने कोमल भावों और सुंदर शब्दों में व्यक्त किया है आपकी काव्य कला ने, मन की गहराई में छिपी है वह क्षमता जो वेदना को स्वर देती है और मन से सारा अवसाद छंट जाता है.

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    1. आदरणीया अनिताजी, ब्लॉग पर आपका आना बहुत अच्छा लगा। मनोबल बढ़ाते शब्दों के लिए हृदय से धन्यवाद।

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  14. आपका सृजन अन्तर्मन को छू गया । आपका लेखन सदैव दिल के करीब होता है ।

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  15. भावनाएं प्रवासी हुईं ...
    शब्द परदेस बस जाएँ तो मन रीता रहता है ... भावनाओं को व्यक्त करना आसान नहीं रहता ...
    मन को छूते हुवे भाव ...

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  16. सुख की मैंने कभी, खोज ना की कहीं,

    वेदना से मेरा प्रेम शाश्वत रहा।

    जिसको पाना असंभव, वही चाह थी,

    मेरी चाहत का हर अंक अद्भुत रहा।

    खिलखिलाहट सजाती रही मंच को,

    कैद परदों के भीतर उदासी हुई ।।

    शब्द परदेस में जाके सब बस गए

    भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं ।। बहुत सुंदर रचना, ये बंद तो मन में उतर गया ।
    सच एक प्रवासी मन निरंतर एक अनजानी खोज में भटकता, गहरे उतरता है,वहां भी भटकता है फिर वही खालीपन, मगर वहीं पे किसी कोने में उपस्थित एक दिव्यकिरण अचानक हाथ थाम लेती है,और मार्ग की रेखाएं परिलक्षित हो जाती हैं ।
    बस वही क्षण फिर आशा और विश्वास का द्योतक है।
    एक गहरे संदेश को आलोकित करती बेहतरीन रचना ।
    बहुत शुभाकामनाएं 💐💐

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    1. सादर आभार जिज्ञासाजी। रचना में अंतर्निहित भावों का विश्लेषणकरती विस्तृत टिप्पणी भावविभोर कर गई।

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  17. जीविका का नहीं, प्रश्न जीने का था,
    खोज जीवन की हर श्वास जारी रही ।
    एक टुकड़ा भी जीवन का दे ना सकी,
    ज़िंदगी, ज़िंदगीभर भिखारी रही।
    कोष श्वासों का भी, यूँ ही लुटता गया,
    कुछ मिला ही नहीं, जब तलाशी हुई ।।
    शब्द परदेस में जाके सब बस गए
    भावनाएँ मेरी अब प्रवासी हुईं ।।
    वाह!!!
    हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब गीत
    जितना पढ़ो उतने अर्थ समेंटे गहन एवं सारगर्भित
    🙏🙏🙏🙏

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  18. सादर आभार सुधाजी। रचना में अंतर्निहित भावों का विश्लेषण करती आपकी विस्तृत टिप्पणी भावविभोर कर गई।

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  19. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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