दिन पर दिन बढ़ती जा रही है
दिनभर की भाग दौड़,
कुछ उम्र, कुछ जिम्मेदारियों
और कुछ सेहत के
तकाजों का जवाब देते-देते,
पस्त हो जाता है शरीर और मन,
दिन भर !!!
कभी तितलियों और पंछियों को
निहारते रहने वाली निगाहें,
अब दिनभर,
मोबाइल और लैपटॉप से जूझतीं हैं,
ऑनलाइन रहती हैं निगाहें दिन भर,
और मन रहता है ऑफलाइन।
बगिया के पौधों को दिन में कई कई बार
सहलानेवाले हाथ,
अब जीवन संघर्ष की उलझी डोर को
सुलझाते-सुलझाते दुखने लगे हैं।
दिन तो गुजर जाता है
पर जब रात गहराती है,
मन की सुनसान वीथियों में
तुम्हारा हाथ पकड़कर चल देते हैं
मेरे मनोभाव,
उस छोटे से कोने की तलाश में,
जहाँ चिर विश्रांति मिल सके।
सुनो, एक सवाल पूछना है।
इस तलाश का अंत कब होगा?
जीवन के उलझे तार,
जवाब देंहटाएंआपके कलम तले साकार।
सुंदर व्यख्यात्मक काव्य।
साझा करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
सादर आभार आदरणीय सर।
हटाएंलम्बी जुदाई
जवाब देंहटाएंकहां थी आप
देख कर चैन आया..
सादर
बहुत सारा स्नेह आपके लिए दीदी। इस बार ब्लॉग पर नियमित होने में समय लगेगा।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 10 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर आभार आदरणीया दीदी।
हटाएंसुंदर, सार्थक रचना !........
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सादर आभार।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-10-21) को "पढ़ गीता के श्लोक"(चर्चा अंक 4213) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सादर आभार प्रिय कामिनी।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपस्त हो जाता है शरीर और मन,
जवाब देंहटाएंदिन भर !!!
कभी तितलियों और पंछियों को
निहारते रहने वाली निगाहें,
अब दिनभर,
बहुत ही प्रभावी रचना!
आपको इतने दिन बाद देख कर बहुत ही खुशी हुई!
सादर आभार आदरणीया मनीषा। बहुत फँसी हुई हूँ। ब्लॉग पर नियमित होने में समय लगेगा इस बार....
हटाएंमेरा भी यही सवाल है। कौन है जो जवाब दे सके? आपको भी, मुझे भी। ख़ुशनसीब है वो जिसके लिए इस तलाश की कोई इंतहा हो, जिसके लिए यह मौत से पहले ख़त्म हो सके।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय जितेंद्र माथुर जी। सही कहा आपने, अधिकतर यह तलाश मृत्यु के साथ ही खत्म होती है।
हटाएंबहुत अच्छी रचना ❤️
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया सुजाता जी।
हटाएंअब जीवन संघर्ष की उलझी डोर को
जवाब देंहटाएंसुलझाते-सुलझाते दुखने लगे हैं।
दिन तो गुजर जाता है
पर जब रात गहराती है,
मन की सुनसान वीथियों में
तुम्हारा हाथ पकड़कर चल देते हैं
मेरे मनोभाव---गहन लेखन।
सादर आभार आदरणीय संदीपजी
हटाएंचाहें ती इसी पल में न चाहें तो अनंत काल में भी नहीं
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया अनिताजी
हटाएंतुम्हारा हाथ पकड़कर चल देते हैं
जवाब देंहटाएंमेरे मनोभाव,
उस छोटे से कोने की तलाश में,
जहाँ चिर विश्रांति मिल सके।
सुनो, एक सवाल पूछना है।
इस तलाश का अंत कब होगा? यथार्थ का चित्रण करती सार्थक रचना ।
बहुत बहुत आभार जिज्ञासाजी
हटाएंदिन पर दिन बढ़ती जा रही है
जवाब देंहटाएंदिनभर की भाग दौड़,
कुछ उम्र, कुछ जिम्मेदारियों
और कुछ सेहत के
तकाजों का जवाब देते-देते,
पस्त हो जाता है शरीर और मन,
दिन भर !!!
यथार्थ के धरातल पर सशक्त भावाभिव्यक्ति । बहुत बार लगभग इस मनोदशा का सामना हम सब करते हैं । प्रभावी सृजन ।
ओंन लाइन वीथियों पे ऑफ मन ...
जवाब देंहटाएंइस थकावट का अंत खुद के अन्दर से ही आने वाला है ... समय के साथ हर पल बीत जाते हैं ... ये तलाश भी ख़त्म होगी ... इन्सान की मनोदशा कई बार थका देती है पर फिर ऊर्जा भी स्वयं ही भर देती है ...
बहुत गहरी रचना है ...
बहुत ही गहन अभिव्यक्ति शब्द-शब्द मन को छूता।
जवाब देंहटाएंसराहनीय सृजन आदरणीय मीना दी।
सादर
मीना दी,कुछ सवाल ऐसे होते है जिनका कोई जबाब नही होता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
Wow kya post likha hai aapne bahut acha lga aapka ye post
जवाब देंहटाएंscience, technology computer ki knowledge ke liye vigyantk.com pr jarur aaye