सोमवार, 16 अगस्त 2021

कितनी यादें दे जाते हैं !

लोग पुराने जब जाते हैं,

कितनी यादें दे जाते हैं !

कसमें भी कुछ काम ना आतीं,

वादे भी सब रह जाते हैं !


पीपल के पत्तों के भी

पीले होने की रुत होती है,

पर मानव के साथी क्यूँकर

बेरुत छोड़ चले जाते हैं ?

लोग पुराने जब जाते हैं,

कितनी यादें दे जाते हैं !


यादें बरगद के मूलों सी

मीलों फैलें हृदय धरा में,

संग साथ के वे सीमित क्षण

बिछड़, अपरिमित हो जाते हैं !

लोग पुराने जब जाते हैं

कितनी यादें दे जाते हैं।


सूखी - सूखी नयन नदी पर

बरस पड़ें जब घन भावों के,

सजल, सघन, संचित बूँदों से

तब तट युग्म नमी पाते हैं। 

लोग पुराने जब जाते हैं

कितनी यादें दे जाते हैं !


कभी गोद में हमको लेकर 

जॊ दिखलाते  चंदा मामा !

हमें बिलखता छोड़, गगन के

तारे वे क्यों बन जाते हैं ?

लोग पुराने जब जाते हैं

कितनी यादें दे जाते हैं।

विशेष : इस कविता का पहला छंद ना जाने क्यों कल सुबह से मन में घुमड़ता रहा था। विचार भी आया, ये कैसी पंक्तियाँ आ रही हैं मन में ? अजीब सी बेचैनी भी थी दिलो दिमाग में। फिर सोचा कि कल रात देखे गए एक भावुक व्लॉग (vlog) का असर होगा, जिसमें शहर के वासी को बरसों बाद गाँव लौटने पर पता चलता है कि उसके गाँव के कुछ पुराने लोग, कुछ साथी अब नहीं रहे। 

खैर, मैंने दोपहर में करीब एक बजे पंक्तियों को लिख लेने का सोचा। दूसरा छंद पूरा हुआ कि मम्मी का फोन आया। मेरी मुँहबोले भाई की धर्मपत्नी, जिन्हें पच्चीस साल से लगातार राखी बाँधती रही हूँ मैं, वे अस्पताल में वेंटिलेटर पर हैं। शायद एकाध घंटा और निकालें। मैं स्तब्ध रह गई। भाभी उम्र में मेरी मम्मी से दो तीन साल ही छोटी थीं। मुझे तो गोद में खिलाया है। बड़ा आत्मीय रिश्ता है उनसे।

बेसब्र होकर उनकी बहू को फोन किया। वह रोते रोते बोली कि दीदी, माँ अभी अभी चली गईं। 

कविता के अंतिम दो छंद आँखों से झरते अश्रुओं के साथ पाँच मिनट में उतर आए। दिल से दिल के ऐसे रिश्तों के जुड़ाव और बिछोह को छठी इंद्रीय ने  अनेक बार महसूस किया और चेताया है। परंतु इस रूप में पहली बार चेताया है।












27 टिप्‍पणियां:

  1. ओह्ह दी बेहद मार्मिक।
    आपकी मनःस्थिति समझ सकती हूँ।
    जिनसे मन का जुड़ाव होता है उनसे विछोह असहनीय पीड़ा दे जाती है। ऐसी स्मृतियां जो मन चाहकर भी नहीं भूल पाता है।
    सच कहूँ तो पलकें भींग गयी अंतिम बंध तक आते आते कारण तो बाद में पढ़ी।
    इस रचना में वाह नहीं लिख सकती हूँ।
    बेहद आत्मीय श्रद्धांजलि 🙏
    आप अपना और सबका ख़्याल रखें दी।
    सप्रेम।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगवार(१७-०८-२०२१) को
    'मेरी भावनायें...'( चर्चा अंक -४१५९ )
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. बहुत सुंदर रचना है।। बेहतर समझें तो रचना हमें पत्रिका प्रकृति दर्शन के लिए मेल या व्हाट्सएप कर दीजिए...
    Email- editorpd17@gmail.com
    Whatsapp- 8191903651
    आपका फोटोग्राफ और संक्षिप्त परिचय भी भेजिएगा..।

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  4. लोग पुराने जब जाते हैं,

    कितनी यादें दे जाते हैं !

    अत्यंत मार्मिक | आँख नम हो गई |

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  5. बेहद मार्मिक । आँखें सजल हो गई रचना के समापन तक आते आते ।

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  6. दिल से दिल के भाव जुड़े ।
    भावनाएं सब एक।

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  7. भावों की सुन्दर अभिवेक्ति।

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  8. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 18 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  9. सुंदर प्रस्तुति आदरनीय💐💐💐💐💐

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  10. आप सभी का सादर आभार रचना पर अपने विचार रखने के लिए।

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  11. मीना जी,इस हृदयस्पर्शी रचना के साथ साथ इस रचना का अभ्युदय कहां से हुआ,प्रसंग बड़ा ही भावविभोर करने वाला है,कभी कभी जीवन में कुछ ऐसे क्षण आते हैं, जो व्यथित कर जाते हैं ।

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  12. अत्यंत मार्मिक रचना!

    कभी गोद में हमको लेकर
    जॊ दिखलाते चंदा मामा !
    हमें बिलखता छोड़, गगन के
    तारे वे क्यों बन जाते हैं ?
    लोग पुराने जब जाते हैं
    कितनी यादें दे जाते हैं।

    यह कैसा इत्तेफाक है.......!

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  13. प्रिय मीना ,
    बहुत बार छठी इंद्रिय संकेत देती है .... कभी सोच में तो कभी सपने में .....
    मार्मिक भाव ....
    दिवंगत आत्मा को ईश्वर शांति प्रदान करे और तुम सबको धैर्य ।

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  14. मैं आपकी भावनाओं को महसूस कर सकता हूँ मीना जी। आपकी ये पंक्तियां तो कालजयी ही हैं:

    संग साथ के वे सीमित क्षण
    बिछड़, अपरिमित हो जाते हैं

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  15. एक प्रतिक्रिया अतिथि ब्लॉग चिड़िया पर :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा )ब्लॉग चिड़िया पर (https://chidiyya.blogspot.com)देखें पूरी रचना :
    कितनी यादें दे जाते हैं !
    लोग पुराने जब जाते हैं,

    कितनी यादें दे जाते हैं !

    कसमें भी कुछ काम ना आतीं,

    वादे भी सब रह जाते हैं !

    पीपल के पत्तों के भी

    पीले होने की रुत होती है,

    पर मानव के साथी क्यूँकर

    बेरुत छोड़ चले जाते हैं ? संवेदनाओं अभिनव प्रतीकों से ससिक्त गेय गीत /छंद बद्ध कविता मीना शर्मा की उदास कर गई स्थिति भोगी उन्होंने तदानुभूति हमें भी बड़ी सशक्त हुई -यादें बरगद के मूलों सी /सूखी -सूखी नयन नदी पर / गज़ब का बेहद का अभिनव प्रतीक विधान सांगीतिक वेदना ुंडके नदी बन गई कविता पढ़ते पढ़ते। कैसे लिख लेते हैं लोग इतनी अच्छी कविता जो संगीत की पूरी तयशुदा बंदिश होती है।

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  16. शब्द शब्द मन की परतें भिगोता।
    हमेशा की तरह लाजवाब सृजन।
    सादर

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  17. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना

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  18. उद्वेलित हो गया हृदय । यादें ... कैसी विडम्बना है मानव जीवन का ।

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  19. दिल को छूती बहुत सुंदर रचना, मीना दी। इंसान यहां पर ही तो मजबूर है। चाह कर भी वो अपनो को भी नही बचा पाता

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  20. मन के भाव सदा कहीं न कहीं सिरा ढूँढ़ते हैं और बह निकलते हैं ... ये प्रवाह सहज ही निकल आता है ... इन्हें रोकना भी नहीं चाहिए ... बहुत भावपूर्ण रचना है ...

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  21. "संग साथ के वे सीमित क्षण
    बिछड़, अपरिमित हो जाते हैं"

    हृदयस्पर्शी !!मीना जी कविताओं के भाव भी तो मन के भाव से ही जन्म लेते है। अपना प्रिय कभी भी किसी परेशानी में होता ह तो पता ही नहीं चलता कि -इस मन को कैसे खबर हो जाती है और वो तड़पने लगता है। कविता की एक एक पंक्तियाँ आपकी मनोदशा बयां कर रही है। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें

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