मन तू, हो जा रे, अंतर्मुखी !
भागेगा बाहर तो होगा दुःखी !
मन तू, हो जा रे, अंतर्मुखी !
ये माया के मेले, झंझट झमेले
यूँ ही चलेंगे रे ! चलते रहेंगे ।
कितना तू रोकेगा, तेरे ही अपने
तुझको छलेंगे रे ! छलते रहेंगे ।
ना सुधरेगा कोई, ना बदलेगा कोई,
जग से लड़ाई बहुत हो चुकी।
मन तू, हो जा रे, अंतर्मुखी !
नदिया के जैसे, तू तृष्णा को हर ले
बादल के जैसे, अहं रिक्त कर ले !
फूलों के जैसे, तू महका दे परिसर
वृक्षों के जैसे, स्थितप्रज्ञ बन ले !
तू अब मौन हो जा, मनन में तू खो जा,
प्रभु से लगा के लौ, हो जा सुखी !
मन तू, हो जा रे, अंतर्मुखी !!!
सृजक ने बनाए, घरौंदे सजाए
ये यूँ ही उजड़ते औ' बसते रहेंगे ।
कभी काल के फंदे ढीले भी होंगे
कभी पाश अपना ये कसते रहेंगे ।
जग की ये गाड़ी, चलती रहेगी
ना ये रुकेगी, ना ये रुकी !
मन तू, हो जा रे, अंतर्मुखी !!!