बुधवार, 4 दिसंबर 2019

अपने-अपने दर्द

अपने-अपने दर्द सभी को खुद ही सहने पड़ते हैं
दर्द छुपाने, मनगढ़ंत कुछ किस्से कहने पड़ते हैं।
किसको फुर्सत, कौन यहाँ तेरे गम का साझी होगा ?
पार वही उतरेगा जो खुद ही अपना माझी होगा।
उलझे रिश्तों के धागे पल-पल सुलझाने पड़ते हैं
बुझे चेतना के अंगारे फिर सुलगाने पड़ते हैं ।।

शाम ढले सागर में नैया किसे खोजने जाती है,
बियावान में दर्दभरी धुन किसके गीत सुनाती है ?
अट्टहास करता है कोई दीवाना मयखाने में,
मध्य निशा में गा उठता है, इक पागल वीराने में,
बंदी अहसासों के सपने कौन चुरा ले जाता है ?
शब्दों के शिल्पी चोरी से किसकी मूरत गढ़ते हैं ?

जिन आँखों को मस्ती के सागर छलकाते देखा हो,
जिन ओठों को बस तुमने हँसते गाते ही देखा हो,
एक बार उन ओठों के कंपन में छुपा रूदन देखो
और कभी उन आँखों में मेघों से भरा गगन देखो।
खामोशी के परदे में जब जख्म छुपाने पड़ते हैं 
तब ही मन बहलाने को, ये गीत बनाने पड़ते हैं।।



14 टिप्‍पणियां:

  1. ओहह दी..हृदयस्पर्शी
    हर शब्द,पंक्तियाँ,बेहद भावपूर्ण हैं।

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  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 5 दिसंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सोचने पर विवश कर रही है आपकी यह पंक्तियां शाम ढले सागर में नैया किसे खोजने जाती है...!
    यू महसूस हो रहा है कि कवियत्री ने अपने अंदर चल रहे हैं तूफान को शब्दों का रूप देकर बाहर पतवार संग छोड़ दिया है बहुत ही अच्छी कविता लिखी आपने

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  4. सच है अपने दर्द का कोई ही सहभागी बन पाता है

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  5. "दर्द छुपाने, मनगढ़ंत कुछ किस्से कहने पड़ते हैं"

    बहुत खूब

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  6. पार वही उतरेगा जो खुद ही अपना माझी होगा।
    उलझे रिश्तों के धागे पल-पल सुलझाने पड़ते हैं
    बुझे चेतना के अंगारे फिर सुलगाने पड़ते हैं

    एक एक पंक्ति दिल को छूती हुई ,लाजबाब सृजन ,सादर नमन मीना जी

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  7. वाह!!मीना जी ,हर एक पंक्ति लाजवाब !!💐

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  8. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०६-१२-२०१९ ) को "पुलिस एनकाउंटर ?"(चर्चा अंक-३५४२) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  9. बहुत सुन्दर मीना जी !
    जब दर्द इतना मधुर गीत लिखने का सबब बन जाए तो फिर दर्द देने से और चोट करने से कौन बाज़ आना चाहेगा?

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  10. दिल को छूती बहुत सुंदर रचना, मीना दी।

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  11. वाह ...
    दिल को छूते हुए शब्द ... सच है खुद को बहलाना भी जरूरी होता है जीवन में और इसी बहलाव के लिए शब्द बुनने होते हैं ... रिश्ते पल पल सुलझाने होते हैं ... सुन्दर रचना है ...

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  12. बहुत सुंदर शब्द शिल्प.

    पार वही उतरेगा जो खुद ही अपना माझी होगा।

    सत्य वक्तव्य.
    बहुत बहुत बधाई.

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  13. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (27-07-2020) को 'कैनवास' में इस बार मीना शर्मा जी की रचनाएँ (चर्चा अंक 3775) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    हमारी विशेष प्रस्तुति 'कैनवास' (संपूर्ण प्रस्तुति में सिर्फ़ आपकी विशिष्ट रचनाएँ सम्मिलित हैं ) में आपकी यह प्रस्तुति सम्मिलित की गई है।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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  14. खामोशी के परदे में जब जख्म छुपाने पड़ते हैं
    तब ही मन बहलाने को, ये गीत बनाने पड़ते हैं।।
    यथार्थ पर आधारित बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।

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