शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं !

फिर कुछ बातें याद आती हैं
फिर कुछ लम्हे तड़पाते हैं !
कोई खुदा-सा हो जाता है
और हम सजदा कर जाते हैं।

रिश्तों के गहरे दरिया में
बहते हैं टूटी कश्ती से !
लहरों के संग बहते-बहते
टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं ।

सर्द है रुत, है सर्द हवा
और सर्द सुलूक तुम्हारा है !
बर्फ से ठंडे अल्फाजों से,
अपने दिल को बहलाते हैं।

एक जुनूनी बादल की,
जिद पर मौसम फिर भीगेगा !
फिर गीले होंगे खत मेरे
पंछी जिनको ले जाते हैं।

छोड़ भी देते दुनिया, पर
इस दुनिया में ही तुम भी हो !
ऐसा ही इक गीत था जो
तुमने गाया, अब हम गाते हैं।








12 टिप्‍पणियां:

  1. वाह दी बेहद हृदयस्पर्शी रचना...आपकी रचनाओं के भाव सदैव मन छू जाते हैं दी।

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  2. रिश्तों के बहते दरिया में
    बहते हैं टूटी कश्ती से !
    लहरों के संग बहते-बहते
    टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं
    बहुत खूब.... ,सादर नमन मीना जी

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  3. दिल को छूते हुए ... भीगे लफ्ज़ ...
    प्रेम के एहसास लिए अभिव्यक्ति ... बहुत सुन्दर रचना ...

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  5. बहुत सुन्दर मीना जी !
    पित्ज़ा, नूडल्स और रोबोट्स के सुपर-फ़ास्ट ज़माने में ऐसा मद्धम-मद्धम दर्द भरा नग्मा अब कहाँ सुनने या पढ़ने को मिलता है !

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  6. बहुत सुंदर सुकून पहुंचाता सा मधुर गीत ।
    वाह!

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  7. "एक जुनूनी बादल की,
    ज़िद पर मौसम फिर भीगेगा !"... वियोग के पल में भी सकारात्मक उम्मीद ... गहरे भरोसे का संकेत भी ...

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  8. आप सभी के स्नेह और आशीर्वाद को पाकर अत्यंत अभिभूत हूँ। फरवरी के महीने से ही ब्लॉग जगत में सक्रिय हो पाऊँगी। सभी का तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया।

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  9. लहरों के संग बहते-बहते
    टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं
    बहुत खूब... मीना जी!

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  10. एक जुनूनी बादल की,
    जिद पर मौसम फिर भीगेगा !
    फिर गीले होंगे खत मेरे
    पंछी जिनको ले जाते हैं।
    बहुत प्यारी रचना जो मन के भावों की उन्मुक्त उड़ान है |लयबद्धता सोने पे सुहागे सी है | बधाई प्रिय मीना बहन | प्यारा , सुहाना चित्र रचना के भावों को विस्तार दे रहा है

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