शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

आती रहेगी दीवाली, जाती रहेगी दीवाली.....

दीपावली जब से नजदीक आती जा रही है, मन अजीब अजीब सा हो रहा है। मुखरित मौन पर व्याकुलभाई की टिप्पणी पढ़ी - "विचार करें अब दीवारों पर रंग कितने घरों में खिलखिलाते हैं। रंगाई-पुताई करने वाले लोगों से भी जरा उनका हाल इस पर्व पर पूछ लें।"
मन सोचने को इसी टिप्पणी से बाध्य हुआ, ऐसा नहीं है। ना जाने कब से ये विचार मन में घुमड़ रहे हैं। 

रोज स्कूल आते जाते समय राह में बनती इमारतों/ घरों का काम करते मजदूर नजर आते हैं। ईंट रेत गारा ढोकर अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करनेवाले मजदूर मजदूरनियों को देखकर यही विचार आता है - कैसी होती होगी इनकी दीवाली ?


रास्तों के किनारे, कचरे से उफनती कचरा पेटियों के आसपास कूड़े के ढ़ेर के ढ़ेर लगे हैं। आखिर इतना कूड़ा कहाँ से आ रहा है ? सालभर का एक ही साथ निकाल रहे हैं क्या लोग ? कूड़े के ढेर से कबाड़ बीनते बच्चों , कबाड़ के टुकड़ों के लिए लड़ती औरतों और उस दुर्गंध को झेलकर कमाए गए चार पैसों पर गिद्ध की सी नजर गड़ाए शराबी मर्दों को पता भी है कि दीवाली आ रही है?

मेरी कामवाली वनिता ज्यादा कमाई की चाह में लोगों के घर दीपावली की साफ सफाई का अतिरिक्त काम कर रही है पिछले पाँच दिन से। नौ घरों का नियमित काम तो है ही। मेरे घर तक पहुँचते-पहुँचते निढाल हो जाती है। मैंने अपने घर की सफाई का काम खुद किया तो बुरा मान रही है। अपने घर को सजाना छोड़ दूसरों के घर सजा सँवार रही है। मैं कहती हूँ - बीमार पड़ेगी तू। वो कहती है कि मजबूरी है दीदी, पैसों की जरूरत है। उसके लिए दीवाली का अर्थ इतना ही है - कुछ ज्यादा कमाई का मौका।


इलेक्शन में सेना के जवानों की ड्यूटी लगी है। बूथ के बाहर हाथ में राइफल सँभाले मुस्तैदी से बैठे उस जवान को देखकर मन भर आया है। होठों पर मूँछों की हलकी सी कोर, नाटा कद, छोटी छोटी आँखें, उम्र लगभग वही, जिसे हम खेलने खाने की उम्र कहते हैं। मेरे बेटे से अधिक उम्र नहीं होगी उसकी। मन किया कि उससे बात करूँ पर सामने से जेठजी और अन्य बुजुर्ग आते देख आगे बढ़ना पड़ा। ये बच्चा ( हाँ, वह भी तो किसी का बच्चा ही है ) दीपावली में क्या अपने परिवार के पास जा सकेगा ? कैसी होगी उसकी और उसके परिवार की दीवाली ? गाँवों में घर परिवार छोड़कर रोजीरोटी की तलाश में शहर में फँसे लाखों मेहनतकश लोगों की भी तो उनका परिवार राह जोहता होगा ना दीवाली पर ? 

बाढ़ में प्रभावित हुए लाखों परिवार, वे किसान जिनकी कड़ी मेहनत से उगी फसलें बेमौसम की बरसात से बर्बाद हो गई हैं, वे छोटे व्यापारी और दुकानदार जिनका व्यापार मंदी की मार, बढ़ती हुई ऑनलाइन खरीददारी और मॉल कल्चर की वजह से चारों खाने चित पड़ा है, वे बेघर जिनके घर और रिहायशी इमारतें बारिश में ढ़ह गए हैं - दीवाली पर कितने खुश हैं ? 

मन को समझाने के लिए माँ की कही एक बात याद करती हूँ - घरों की रंगाई पुताई करनेवाले हों या बोझा ढ़ोनेवाले या गरीब किसान मजदूर, त्योहार तो सबका है। कोई महँगी मिठाइयाँ खा बाँटकर मनाएगा, कोई गुड़ की डली से मुँह मीठा करके मनाएगा। एक ही परिवार के चार बच्चों में भी सबकी किस्मत समान नहीं होती। धरती सबकी माँ कहलाती है पर बाढ़ में घर सबके नहीं बह जाते। 

वैसे इस बार बाढ़ ने इतनी तबाही मचाई है कि दीपावली का उत्साह फीका पड़ गया है। बारिश भी दीपावली देखकर जाने की जिद पर अड़ी है। रास्तों पर फेंका कचरा गीला होकर सड़ रहा है। 

हे माँ लक्ष्मी ! आप कैसे आएँगी ? इस शहर के गंदे और गड्ढों भरे रास्तों में विचरण की हिम्मत जुटा पाएँगी या पटाखों के, गाड़ियों के धुएँ से भरे प्रदूषित वायुमार्ग से पधारेंगी ? 

दूसरों के घरों को चमकाने में जिनके अपने घर अंधकारमय रह गए, अस्वच्छ रह गए, कभी उनके भी घर चली जाना माँ! वे तंग, गंदी, संकरी गलियों में, काली - मैली झुग्गियों में रहने को मजबूर हैं और आप चमकते, स्वच्छ, सजे सँवरे घरों को पुरस्कृत करने के अपने प्रण पर अडिग हो ! 

ना आप वहाँ जाएँगी, ना इनके दिन बदलेंगे। पीढ़ी दर पीढ़ी यही चलता रहेगा। दीवाली आती रहेगी, जाती रहेगी। सच ही कहा है किसी ने - "पैसा पैसे को खींचता है ।"

6 टिप्‍पणियां:

  1. जी मीना दी
    बहुत-बहुत आभार
    जो आपने मेरी टिप्पणी को इतना महत्व दिया।
    बहुत सुंदर समीक्षा की है आपने , हर ओर दृष्टि डालने का प्रयत्न एक संवेदनशील मनुष्य को निश्चित ही करना चाहिए, भले ही वह निराकरण में असमर्थ हो,फिर भी उसके हृदय में "सबका साथ- सबका विकास " वाला भाव होगा, जो सत्ता पाने के लिये किसी राजनीतिक जुमले जैसा नहीं होगा।
    पुनः प्रणाम।

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  3. हुत सुंदर प्रिय मीना बहन , आपने सही दिशा में चिंतन किया | दीवाली का मतलब सबके लिए अलग अलग होता है |एक घरेलू कार्य सहायिका के लिए मात्र पैसा अधिक कमाने का जरिया तो धनवानों के लिए अपनी अमीरी के प्रदर्शन का एक माध्यम भर | कितना कचरा बढ़ा , कितना पर्यावरण को नुकसान हुआ या होगा किसे खबर |सैनिकों के रूप में देश की सेना को ज्यादातर गरीब या मध्यमवर्गीय परिवारों के होनहार चिराग मिलते हैं , जिनका लक्ष्य सरकारी नौकरी के सहारे परिवार का भविष्य संवारना है | दीवाली घर पर कभी मनती होगी पता नहीं पर लोगों की दीवाली को जरुर सुरक्षित बना देते हैं | और बहुत सच लिखा आपने . लक्ष्मी की शर्त भी यही कि वो जायेंगी तो स्वच्छ , सुंदर घरों में !जिनको घर की छत नसीब नहीं वे कैसे और कहाँ दीवाली से परिचित हों | ड्योढ़ी नहीं दीप कहाँ सजेंगे ? मैं बहुत दिनों से से सडक पर रह रहे एक परिवार को देखती हूँ जिसमें दो महिलाएं और दो पुरुष हैं | संभवतः , माँ- बाप और बेटा -बहू होंगे | या फिर बेटी -दामाद भी हो सकते हैं | उन्हें अक्सर रात के समय देखा है मैंने | दोनों महिलाएं खूब बढ़िया तरीके से कपडे तह करके पास ही रख रही होती हैं |तो कभी- कभी साथ- साथ हँसते हुए एक अंगीठी पर खाना बना रही होती हैं | घर नहीं पर उन्हें सारे घरेलु काम आते हैं | सडक पर भी बड़ी तहजीब से रहते हैं | मन पीड़ा से भर जाता है | क्या कहती होगी उनकी आत्मा ? क्या चारों और इमारतों के जंगल को देख कलपती ना होगी ? असंख्य घरों में एक छत उनके नाम क्यों ना नहीं हो सकी ?उनके लिए क्या दीवाली क्या होली ? जब किसी इन्सान को ऐसे लोगों पर दया नहीं आती तो माँ लक्ष्मी क्यों उनका रुख करेंगी ? पर अच्छा है उन्हें इस हाल में भी खुश रहना और खिलखिलाना आता है | नियति के दिए अभावों को कितनी सरलता से स्वीकार कर लेतें हैं ये लोग ? ईश्वर करे उनकी ये ख़ुशी हमेशा रहे |
    संवेदनशीलता से भरे लेख के लिए साधुवाद और आपको सपरिवार दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें |

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  4. Meena ji

    दूसरों के घरों को चमकाने में जिनके अपने घर अंधकारमय रह गए, अस्वच्छ रह गए, कभी उनके भी घर चली जाना माँ!

    bahut hi achha lekh
    aapki mlekhni me smaaj me din raat ghat rhi baaton ka asar saaf jhalka rhaa he

    acche lekhan ke liye badhaayi

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  5. हे माँ लक्ष्मी ! आप कैसे आएँगी ? इस शहर के गंदे और गड्ढों भरे रास्तों में विचरण की हिम्मत जुटा पाएँगी या पटाखों के, गाड़ियों के धुएँ से भरे प्रदूषित वायुमार्ग से पधारेंगी ?

    बेहद महत्वपूर्ण सवाल ,सच कहा आपने दिवाली सबके लिए एक समान नहीं होती ,एक मर्मस्पर्शी ह्रदय से निकली चीत्कार हैं ये लेख ,सादर नमन मीना जी

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