शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

दर्द का रिश्ता

दर्द का रिश्ता दिल से है,
और दिल का रिश्ता है तुमसे !
बरसों से भूला बिसरा,
इक चेहरा मिलता है तुमसे !

यूँ तो पीड़ाओं में मुझको,
मुस्काने की आदत है ।
काँटों से होकर फूलों को,
चुन लाने की आदत है ।
पर मन की देहरी गुलमोहर,
शायद खिलता है तुमसे !
बरसों से भूला बिसरा,
इक चेहरा मिलता है तुमसे !

धूमिल सा उन तारों में जब,
मेरा नाम लिखा देखो,
भूरी सी चिड़िया बोले तो
गीत अनाम लिखा देखो !
तब इतना तो कह देना -
"ये वक्त बहलता है तुमसे"...
बरसों से भूला बिसरा,
इक चेहरा मिलता है तुमसे !

निर्मलता की उपमा से,
क्यों प्रेम मलीन करूँ अपना,
तुम जानो अपनी सीमाएँ,
मैं जानूँ, तुम हो सपना !
साथ छोड़कर मत जाना,
भटकाव सँभलता है तुमसे !
बरसों से भूला बिसरा,
इक चेहरा मिलता है तुमसे !

13 टिप्‍पणियां:

  1. आहा दी ...शब्द नहीं किन उपमाओं से अलंकृत करूँ आपकी यह मनमोहक हृदयस्पर्शी रचना...शब्द-शब्द मन को छू गया। अति सुंदर सृजन दी 👌

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  2. निर्मलता की उपमा से,
    क्यों प्रेम मलीन करूँ अपना,

    ऐसी रचना आप ही लिख सकती हैं, मीना दी। ब्लॉग जगत से जुड़े उन संवेदनशील लोगों के लिये आपकी रचना वरदान है। जिनमें मिलावट, दिखावट और बनावट नहीं है।
    शेष तो वाह-वाह की यह दुनिया है।
    आपकी लेखनी को नमन। सरल शब्दों में भावों की निश्छलता प्रकट हो रही है प्रत्येक पंक्ति में।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 12 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. "ये वक्त बहलता है तुमसे"
    क्या ही कमाल रचना.. अटूट प्रेम भाव छलकता हुआ आपकी इस रचना से.

    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे 

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  5. अद्भुत भाव लिए अनुपम सृजन ..शब्द शब्द अपनत्व के भाव में डूबा हुआ । बेहद खूबसूरत सृजन मीना जी ।

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  6. साथ छोड़कर मत जाना,
    भटकाव सँभलता है तुमसे !...
    मनुहार की पराकाष्ठा .. मानो भटकते बन्जारे को बस्ती की ठहराव मिलने की अपेक्षा हो किसी से ...
    अच्छे पल में अच्छी अनुभूति के साथ रची .. अच्छी रचना .. बस इतना ही कहूँगा ..( वैसे "आहा" या "वाह्ह्ह्ह्ह्" जैसा कुछ भी नहीं कह/लिख रहा रचना के लिए ) ...

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  8. प्रेम की परकाष्ठा का भाव लिए अति सुंदर सृजन मीना जी ,सादर

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  9. यूँ तो पीड़ाओं में मुझको,
    मुस्काने की आदत है ।
    काँटों से होकर फूलों को,
    चुन लाने की आदत है । बेहद खूबसूरत रचना मीना जी

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  10. अद्भुत भाव,
    काँटों से होकर फूलों को,
    चुन लाने की आदत है ।
    पर मन की देहरी गुलमोहर,
    शायद खिलता है तुमसे !
    सरस शृंगार उपमा अलंकार से सजा सुंदर सृजन।

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  11. Wahhh...but khoob pehli hi line mei itni gehrai..dard k rishta dil se h or dil k rishta tumse h..dil kerta h Barbar padhti rahu..mann ki bhawnaye nazar aati h is rachna mei..excellent Meena ji.

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  12. एक-एक शब्द भावपूर्ण ...
    संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...

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