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फूले पलाश झर जाते हैं,
टेसू आँसू बरसाते हैं,
दारुण दिनकर की ज्वाला में,
जब खिले पुष्प मुरझाते हैं,
सृष्टि होती आकुल व्याकुल,
हिमगिरी का मुकुट पिघलता है...
तब गुलमोहर खिलता है !!!
जिद्दी बच्चे सी मचल हवा,
पैरों से धूल उड़ाती है,
तरुओं के तृषित शरीरों से,
लिपटी बेलें अकुलाती हैं,
जब वारिद की विरहाग्नि में,
धरती का तन मन जलता है...
तब गुलमोहर खिलता है !!!
निर्लिप्त खड़ा यूँ उपवन में,
ज्यों कोई दुःख ना कोई सुख,
रक्तिम फूलों की आभा से,
लाल हुआ है सुंदर मुख !
जब कोकिल की मीठी वाणी का,
रस पेड़ों पर झरता है...
तब गुलमोहर खिलता है !!!
तपती धरती, तपता अंबर,
प्रकटी है अग्नि, फूल बनकर,
सिंदूर सजाए सुहागन सा
तेजोमय यह सौंदर्य प्रखर !
नदिया के सूने तट कोई ,
जब राह किसी की तकता है...
तब गुलमोहर खिलता है !!!
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१३ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपके स्नेह से अभिभूत हूँ। धन्यवाद इस रचना को याद रखने के लिए प्रिय श्वेता।
जवाब देंहटाएंवाह!!प्रिय सखी ,बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंवाह.... बहुत ही बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंअनुपम शब्द सौष्ठव अनुपम अवगूंठन अनुपम काव्य अनुपम भाव ।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर।
निर्लिप्त खड़ा यूँ उपवन में,
जवाब देंहटाएंज्यों कोई दुःख ना कोई सुख,
रक्तिम फूलों की आभा से,
लाल हुआ है सुंदर मुख !
जब कोकिल की मीठी वाणी का,
रस पेड़ों पर झरता है...
तब गुलमोहर खिलता है !!!
अद्भुत शब्दविन्यास... बहुत ही लाजवाब सृजन हमेशा की तरह
वाह!!!
लाल हुआ है सुंदर मुख !
जवाब देंहटाएंजब कोकिल की मीठी वाणी का,
रस पेड़ों पर झरता है...
तब गुलमोहर खिलता है !!!
अद्भुत शब्दविन्यास... बहुत ही लाजवाब बहुत खूबसूरत अंदाज़ में पेश की गई है पोस्ट......शुभकामनायें।
तपती धरती, तपता अंबर,
जवाब देंहटाएंप्रकटी है अग्नि, फूल बनकर,
सिंदूर सजाए सुहागन सा
तेजोमय यह सौंदर्य प्रखर !
बहुत खूब...... ,सादर नमस्कार
शुभाजी, अनुराधाजी,कुसुम कोठारीजी, सुधा जी, संजय भास्कर जी,कामिनी बहन आप सभी का हृदयपूर्वक आभार व्यक्त करती हूँ। सादर एवं सस्नेह।
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना बहन -- ये रचना मेरे लिए बहुत खास है | इसी रचना के जरिये दो साल पहले आपके ब्लॉग पर पहली बार आई थी | इतनी सुंदर रचना पढ़कर मैं निशब्द हो गयी थी | सस्नेह
जवाब देंहटाएंनिर्लिप्त खड़ा यूँ उपवन में,
जवाब देंहटाएंज्यों कोई दुःख ना कोई सुख,
रक्तिम फूलों की आभा से,
लाल हुआ है सुंदर मुख !
जब कोकिल की मीठी वाणी का,
रस पेड़ों पर झरता है...
तब गुलमोहर खिलता है !!!
वाह !!!!!
प्रिय रेणु, ये आज देखा। आपके निर्मल स्नेह के लिए हमेशा शुक्रगुज़ार रहूँगी।
हटाएंबहुत सुंदर रचना!
जवाब देंहटाएंहर बंध प्राणवंत
जवाब देंहटाएंप्रकृति का रहस्य अनंत
कविता के प्रवाह में
मुक्तक-सा मिलता है
तब गुलमोहर खिलता है।
वाह!वाह!!और वाह!!!
बहुत बहुत भावविभोर कर दिया, सुंदर पंक्तियाँ। हृदयपूर्वक आभार आदरणीय विश्वमोहनजी।
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