शनिवार, 20 अगस्त 2016

प्रेरणा


 प्रेरणा

स्कूल का पहला दिन । नया सत्र,नए विद्यार्थी।कक्षा में प्रवेश करते ही लगभग पचास खिले फूलों से चेहरों ने उत्सुकता भरी आँखों और प्यारी मुस्कुराहटों के साथ "गुड मॉर्निंग मैम " कहकर खड़े होकर स्वागत किया तो एक नई ऊर्जा से भर उठी मैं ।

अभिवादन का जवाब देते हुए अपनी नजरों के दायरे में पूरी कक्षा को समेटते हुए आखिरी बेंच पर बैठी नई लड़की पर नजर टिक गई जो मेरे कक्षा में आने पर भी खड़ी नहीं हुई थी।

उसे अनदेखा करके मैं हाजिरी लेने लगी । दसवींकक्षा के ये विद्यार्थी मेरे लिए नए नहीं हैं । पिछले साल नवीं कक्षा में मैं इनको हिंदी विषय पढ़ाती थी, पर यह एक नया नाम है...

'विभा माने' 

मेरे नाम पुकारने पर भी बैठे - बैठे ही एक हाथ ऊपर करके जवाब दिया ,"प्रेजेंट मैम"
   
अजीब ढीठ लड़की है ! मैनर्स सिखाए ही नहीं किसी ने !

ऐसे तो मेरी क्लास के और बच्चे भी बिगड़ जाएँगे ।अब मेरे अंदर की टीचर जाग गई थी । 

"विभा, आप नए हो इस स्कूल में ?" 
"जी मैम।"
"कौनसे स्कूल से आई हो ?"
"वाणी विद्यामंदिर , रायपुर से मैम" मधुर नम्र शब्दों में जवाब लेकिन अब भी बैठे - बैठे ही ।

"टीचर्स के आने पर और उनसे बात करते समय खड़े होते हैं , इतना भी आपको सिखाया नहीं गया ?"
 
इसके जबाब में उसने सिर झुका लिया था । सारी कक्षा के बच्चों की नजरें कभी उसकी तरफ तो कभी मेरी ओर । विभा की आँखों से टप - टप आँसू झर रहे थे ।

तभी पहली बेंच पर बैठी सुरभि उठकर मेरे पास आई और बहुत धीरे से कहा...

"मैम, विभा खड़ी नहीं हो सकती। उसके बड़े भैया उसे गोद में उठाकर कक्षा में बिठा गए थे । हम सबसे कहा है उसका खयाल रखने को।"

"हे भगवान ! कितनी बड़ी गलती हो गई मुझसे । विभा, मुझे माफ करना । मुझे कुछ भी पता नहीं था। प्रिंसिपल मैडम भी शायद भूल गई मुझे तुम्हारे बारे में सूचित करना। बच्चों, आज से विभा मेरी बेटी है । विभा, मुझे गर्व है कि तुम मेरी कक्षा में हो । तुम हम सबकी प्रेरणा बनोगी ।"
 
अगले कुछ पलों में....

मेरे गले लगी विभा और मेरी कक्षा में गीली आँखों के साथ मीठी मुस्कुराहटों की गंगा - जमुना का पवित्र संगम हो रहा था। 
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