शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

हम सब कितने बँटे हुए हैं

हम सब कितने बँटे हुए हैं
इक दूजे से कटे हुए हैं !
कब, क्या कहना, किसे, कहाँ पर
सब पहले से रटे हुए हैं !

दिखने को बाहर से दिखते
जैसे बिलकुल जुड़े हुए हैं,
लेकिन जब अंदर झाँको तो
पुर्जे - पुर्जे खुले हुए हैं !
हम सब कितने बँटे हुए हैं ।

तन से कहीं, कहीं हैं मन से
कहीं नयन से, कहीं चितवन से 
देख रहे सारी दुनिया को
पर खुद सबसे छुपे हुए हैं !
हम सब कितने बँटे हुए हैं ।

कितना भी तुम करो समर्पण,
कोई टुकड़ा बचा ही लोगे !
पूरा नहीं किसी का कोई ,
दिल के हिस्से किए हुए हैं !
हम सब कितने बँटे हुए हैं ।

बुद्धि बड़ी, भावना छोटी
फिर इंसान की नीयत खोटी !
उलझन, किस ईश्वर को मानें ?
धर्म - जात में फँसे हुए हैं !
हम सब कितने बँटे हुए हैं ।

हम सब कितने बँटे हुए हैं
इक दूजे से कटे हुए हैं !
कब, क्या कहना, किसे, कहाँ पर ,
सब पहले से रटे हुए हैं !






गुरुवार, 23 जनवरी 2025

साथ

पतझड़ आते ही 
बिछड़ना होता है
पत्तों को अपनी शाख से
बस, कौन सा कब छूटेगा 
यही तय नहीं होता !
जाना सबको है ।

साथी, जो खून के रिश्तों से बनते हैं
और साथी जो दिलों से बनते हैं,
साथ दें, तो साथी हैं
वरना क्या खून और क्या दिल ?
चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थियों के 
अभ्यास का विषय भर हैं ये !

नसीब निर्धारित करता है
किसको, किसका साथ मिलेगा ।
कभी-कभी, किसी और से 
कर्ज चुकवाने के लिए
किसी का किसी से साथ छूटता है 
या रास्ते ही अलग हो जाते हैं
या खो जाते हैं राही !
फिर कोई और हो जाता है हमराह 

कभी कोई भी नहीं मिलता,
अपना साहस ही देता है साथ
सूरज सर पर हो तो
परछाईं भी साथ छोड़ देती है !


शनिवार, 28 दिसंबर 2024

अब मेरा अधिकार नहीं है

साथ वक्त के दुनिया बदली,
रुत के संग बदला उपवन
रिश्तों की खींचातानी में, 
शिथिल हुए आत्मा के बंधन !
चकाचौंध में चाँदी की 
विस्मरण हुआ अहसासों का,
धूल धूसरित धरती क्या, 
जब चंद्र मिले आकाशों का !
जिस दुनिया ने तुम्हें लुभाया, 
वह मेरा संसार नहीं है !
तेरी पीड़ाओं पर साथी, 
अब मेरा अधिकार नहीं है !

है अपूर्व अनुराग अभी भी, 
किंतु राग का मरण हुआ
भाव अनंत भरे हैं मन में, 
अभिव्यक्ति का क्षरण हुआ !
तेरे पदचिन्हों का मुझसे 
अनजाने अनुकरण हुआ,
शायद कुछ पिछले जन्मों के 
अनुबंधों का स्मरण हुआ !
लेख लिखा है यह विधना ने, 
यह कोई व्यापार नहीं है!
तेरी पीड़ाओं पर साथी, 
अब मेरा अधिकार नहीं है !

सागर में बहते-बहते, 
दो काष्ठ-फलक टकराते हैं
निर्धारित है काल यहाँ ,
संग-संग कितना बह पाते हैं !
किसको वहीं अटक जाना है,
किसको आगे बढ़ना है ?
लहरों की मर्जी पर उनका, 
मिलना और बिछड़ना है !
कैसे साथ निभाते दोनों, 
जब कोई आधार नहीं है
तेरी पीड़ाओं पर साथी, 
अब मेरा अधिकार नहीं है !

सोने-चाँदी धन-दौलत 
हर दोष छिपा ले जाते हैं,
धनहीनों के ही चरित्र पर 
उँगली लोग उठाते हैं !
सारी मुस्कानें हैं तेरी, 
तेरा सब उजियारा है
मेरे अश्रू छुपानेवाला 
बस मेरा अंधियारा है !
अभिनय से अभीष्ट पा लेना, 
यह मेरा व्यवहार नहीं है
तेरी पीड़ाओं पर साथी, 
अब मेरा अधिकार नहीं है ?