जीवन का यह गणित हमारी समझ ना आए !
जोड़ - घटा का फलित हमारी समझ ना आए !
कभी एक के जुड़ जाने से ,
खुशियाँ सहस गुना हो जाती !
कभी एक का ही घट जाना ,
सब कुछ शून्य बना जाता है ।
हिम्मत को सौ गुना बनाता ,
एक हाथ का हाथ पकड़ना
दुःख को कई गुना कर देता ,
बिन गलती के सजा भुगतना ।
समीकरण अभिमान - स्वार्थ के
कर देते हैं चकित, हमारी समझ ना आए !
जीवन का यह गणित हमारी समझ ना आए ।
अजब हिसाब लाभ - हानि का,
देन लेन की गज़ब है गणना
किसके साथ बनाना आयत,
किसके साथ वृत्त की रचना ।
क्ष का मान बढ़ाना हो तो,
य का मान कहाँ कम करना
प्रतिच्छेदी रेखाओं का कब,
किस बिंदु, किस कोण पे कटना ?
क्या यह सब पहले से तय है ?
कैसे होता घटित, हमारी समझ ना आए !
जीवन का यह गणित हमारी समझ ना आए ।
दो में करके हृदय विभाजित,
क्यों खुद को आधा करता है
सूत्रों के जंजाल में फँसना,
जीवन में बाधा करता है ।
मन से मन की दूरी को,
मन ही तो कम-ज्यादा करता है
एक तीर से कई निशाने,
लक्ष्य कई साधा करता है ।
मानव का यह छद्म वेष, यह
असली - नकली चरित हमारी समझ ना आए !
जीवन का यह गणित हमारी समझ ना आए ।
जोड़ - घटा का फलित हमारी समझ ना आए !