मत सिखाओ गुलाब को
कि वह काँटों से लड़ मरे,
कि वह काँटों से लड़ मरे,
कि वह काँटों की
चुभन का जवाब दुर्गंध से दे ।
काँटों में खिलना,
सुगंध और सौंदर्य से परिपूर्ण
एक गरिमामय जीवन जीना
यही गुलाब का स्वभाव है ।
मत सिखाओ कमल को
कि वह कीचड़ को गालियाँ दे,
कि वह कोसे अपने जन्म को ।
अपनी उपस्थिति से
कीचड़ का भी मान बढ़ाना,
कीचड़ से ऊपर उठकर
निर्लिप्त होकर जीना,
यही कमल का स्वभाव है।
मत सिखाओ नदिया को
कि सागर से मिलने खातिर
हजारों मील की अथक
यात्रा करना बेवकूफी है,
कि अपनी मिठास बचा रखे,
क्योंकि खारे सागर में समाकर
खारा हो जाना नितांत मूर्खता है ।
'तेरा तुझको अर्पण'
सागर में समर्पण ,
यही नदी का स्वभाव है ।
मत सिखाओ चिड़िया को
कि वह कोयल सा कुहुके,
कि वह मयूरपंखी होकर नाचे,
कि वह बाज, चील, गिद्ध हो जाए ।
थोड़े से दाने पाकर
संतोष से फुदकना,
प्रेम और विश्वास का
तिनका - तिनका जोड़ना,
रुई से कोमल पंखों को फुलाकर
अपनी चूँ चूँ, चीं चीं में मुखर होना,
यही चिड़िया का स्वभाव है।
अपने अपने स्वभाव में जीना आ जाये तो किसी को कोई पीड़ा ना रहे
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद आदरणीया अनिता दीदी।
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 9 अगस्त 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
सुन्दर
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (१०-०८-२०२३) को 'कितना कुछ कुलबुलाता है'(चर्चा अंक-४६७६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
Kitni sundar rachna hai!
जवाब देंहटाएंआपके कथ्य का भाव निश्चय ही ग्रहण करने योग्य है।
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