मत सिखाओ गुलाब को
कि वह काँटों से लड़ मरे,
कि वह काँटों से लड़ मरे,
कि वह काँटों की
चुभन का जवाब दुर्गंध से दे ।
काँटों में खिलना,
सुगंध और सौंदर्य से परिपूर्ण
एक गरिमामय जीवन जीना
यही गुलाब का स्वभाव है ।
मत सिखाओ कमल को
कि वह कीचड़ को गालियाँ दे,
कि वह कोसे अपने जन्म को ।
अपनी उपस्थिति से
कीचड़ का भी मान बढ़ाना,
कीचड़ से ऊपर उठकर
निर्लिप्त होकर जीना,
यही कमल का स्वभाव है।
मत सिखाओ नदिया को
कि सागर से मिलने खातिर
हजारों मील की अथक
यात्रा करना बेवकूफी है,
कि अपनी मिठास बचा रखे,
क्योंकि खारे सागर में समाकर
खारा हो जाना नितांत मूर्खता है ।
'तेरा तुझको अर्पण'
सागर में समर्पण ,
यही नदी का स्वभाव है ।
मत सिखाओ चिड़िया को
कि वह कोयल सा कुहुके,
कि वह मयूरपंखी होकर नाचे,
कि वह बाज, चील, गिद्ध हो जाए ।
थोड़े से दाने पाकर
संतोष से फुदकना,
प्रेम और विश्वास का
तिनका - तिनका जोड़ना,
रुई से कोमल पंखों को फुलाकर
अपनी चूँ चूँ, चीं चीं में मुखर होना,
यही चिड़िया का स्वभाव है।