देखकर उनकी तरफ,
बात थी छोटी सी, मगर
बन गई कहानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो....
उम्र तो बस उम्र थी,
बीतती चली गई।
बचपना अब भी वही,
अब भी वही नादानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो.....
ग़र्द उस शीशे पे जाने
कब से है जमी हुई,
है नहीं आसां मिटाना
वक्त की निशानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो.....
बादलों से फिर झरेंगे
गीत मेरे इश्क के,
सूखते दरिया में होंगी
फिर वही रवानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो.....
हर बरस बरसेगा सावन
ये बरस लौटेगा कब ?
लौटकर आती नहीं
गुजरी हुई जवानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो......
बात थी छोटी सी, मगर
बन गई कहानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो....
उम्र तो बस उम्र थी,
बीतती चली गई।
बचपना अब भी वही,
अब भी वही नादानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो.....
ग़र्द उस शीशे पे जाने
कब से है जमी हुई,
है नहीं आसां मिटाना
वक्त की निशानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो.....
बादलों से फिर झरेंगे
गीत मेरे इश्क के,
सूखते दरिया में होंगी
फिर वही रवानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो.....
हर बरस बरसेगा सावन
ये बरस लौटेगा कब ?
लौटकर आती नहीं
गुजरी हुई जवानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो......
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय दिग्विजय भाईसाहब। आपने रचना को पसंद किया, हृदय से धन्यवाद।
Deleteबहुत ख़ूब मीना जी !
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी।
Deleteवाह दी क्या खूबसूरत गज़ल लिखी है आपने..
ReplyDeleteशब्द-शब्द रूह में उतरता हुआ बेहद लाज़वाब दी।
आपकी रचनाओं पर सराहना के लिए शब्द नहीं होते दी।
सस्नेह
सादर।
बहुत सारा स्नेह और धन्यवाद प्रिय श्वेता।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रिय मीना | आध्यात्मिक प्रेमिल भावों की खूबसूरत अक्कासी करती रचना व सरल शब्दों में भावनाओं का सुरीला जादू है | अपनी अभिव्यक्ति को विराम ना दो | ये गीत रुकने नहीं चाहिए | हार्दिक शुभकामनाएं और स्नेह इस सुंदर प्रस्तुति के लिए |
ReplyDeleteबहुत सारा स्नेह और धन्यवाद प्रिय रेणु।
Deleteक्या खूब लिखा --
ReplyDeleteगीत मेरे इश्क के,
सूखते दरिया में होंगी
फिर वही रवानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो...../////
हर बरस बरसेगा सावन
ये बरस लौटेगा कब ?
लौटकर आती नहीं
गुजरी हुई जवानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो....../////
😊 शुक्रिया
Deleteबादलों से फिर झरेंगे
ReplyDeleteगीत मेरे इश्क के,
सूखते दरिया में होंगी
फिर वही रवानियाँ !
मुस्कुराए भर थे हम तो...
वाह!!!
लाजवाब गीतिका....
सच में मीना जी आपने लेखनी का जबाव नहीं।
बहुत सारा स्नेह और धन्यवाद सुधा जी
DeleteThis comment has been removed by the author.
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ReplyDeleteबादलों से फिर झरेंगे
गीत मेरे इश्क के,
सूखते दरिया में होंगी
फिर वही रवानियाँ !..भावों की सुंदरतम अभिव्यक्ति, लाज़वाब पंक्तियां..
बहुत सारा स्नेह और धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 15 -03 -2021 ) को राजनीति वह अँधेरा है जिसे जीभर के आलोचा गया,कोसा गया...काश! कोई दीपक भी जलाता! (चर्चा अंक 4006) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार आदरणीय रवींद्रजी। चर्चामंच पर रचना के आने से मुझे बहुत खुशी होगी। कोई आपत्ति नहीं है। धन्यवाद।
Deleteजवानियाँ भले ही न लौटें लेकिन दरिया में तो रवानी आ ही जाएगी । निशानियां जो हैं पास और मुस्कुराहट है खास ।
ReplyDeleteनादानी ही समझ लेते हैं ।
खूबसूरत रचना ।
बहुत सारा स्नेह और धन्यवाद आदरणीया संगीता दीदी
Deleteवाह सुन्दर भाव प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सारा स्नेह और धन्यवाद रितु जी
Deleteवाह! बहुत सुंदर सृजन आदरणीय मीना दी।
ReplyDeleteसादर
जीव न का यथार्थ सीधे-सादे शब्दों में..।
ReplyDeleteवाह!
हर बरस बरसेगा सावन
ReplyDeleteये बरस लौटेगा कब ?
लौटकर आती नहीं
गुजरी हुई जवानियाँ !
गई जवानी कभी लौट कर नहीं आती,अब तो बुढ़ापे का इन्तजार ही करना है, वैसे हम चाहे तो जिंदादिली रह सकते हैं,
लाजबाव सृजन मीना जी,सादर नमन
अप्रतिम सृजन मिना जी।
ReplyDeleteबहुत सधी हुई सुन्दर गजल |शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteसुंदर कविता...
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteप्रेम विरह और मौसम के साथ जीवन के असल अर्थ को समेटे बहुत ही खूबसूरत गीत ... मन को छूते हुए हर बंद ... होली की बहुत शुभकामनायें ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता
ReplyDeleteसुंदर सृजन आदरणीय मीना जी
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