बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

कितना और मुझे चलना है ?

जीवन की लंबी राहों में

पीछे छूटे सहचर कितने !

कितनी यात्रा बाकी है अब ?

कितना और मुझे चलना है ?


कितना और अभी बाकी है, 

इन श्वासों का ऋण आत्मा पर !

किन कर्मों का लेखा - जोखा,

देना है विधना को लिखकर !

अभी और कितने सपनों को,

मेरे नयनों में पलना है ?

कितना और मुझे चलना है ?


अस्ताचल को चला भास्कर

और एक दिन गया गुजर !

कितने और पड़ाव रह गए ?

सहज प्रश्न यह, अचरज क्योंकर ?

बाकी कितने अनजानों से,

मुझको और यहाँ मिलना है ?

कितना और मुझे चलना है  ?


यूँ तो, इतनी आसानी से

मेरे कदम नहीं थकते हैं,

लेकिन जब संध्या की बेला

पीपल तले दिए जलते हैं !

मेरे हृदय - दीप  की, कंपित

लौ पूछे, कितना जलना है ?

कितना और मुझे चलना है ?







46 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 30-10-2020) को "कितना और मुझे चलना है ?" (चर्चा अंक- 3870 ) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.

    "मीना भारद्वाज"

    सादर सूचनार्थ - आपकी रचना की प्रथम पंक्ति शुक्रवार की चर्चा के शीर्षक के रूप में मंच की शोभा बढ़ायेगी
    ....
    "मीना भारद्वाज"

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    1. इस सम्मान के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया मीना जी।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० अक्टूबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. इस सम्मान के लिए बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय श्वेता। बहुत सा स्नेह भी।

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    1. ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति को मैं अपनी और इस रचना की उपलब्धि मानती हूँ आदरणीया दीदी। हृदय से आभार आपका !

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  4. यूँ तो, इतनी आसानी से
    मेरे कदम नहीं थकते हैं,
    लेकिन जब संध्या की बेला
    पीपल तले दिए जलते हैं !
    मेरे हृदय - दीप की, कंपित
    लौ पूछे, कितना जलना है ?
    कितना और मुझे चलना है ?
    - अत्यंत ही प्रभावशाली रचना का सृजन हुआ है आपकी लेखनी से। इस गतिमान जीवन में अनथक चलना जितना आवश्यक है शायद उतना ही आवश्यक है एक गहन चिंतन। आपको नमन करते हुए साधुवाद व शुभ-कामनाएँ आदरणीया मीना जी।

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    1. आपकी सुंदर टिप्पणी से इस रचना की सार्थकता को विस्तार मिला है। हृदय से धन्यवाद देती हूँ आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा जी।

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  5. यही तो किसी को पता नहीं होता कि कितना चलना है
    -किसी की लाठी छीन जाती
    -किसी छौने से उसका छत
    जब तक साँसें हैं बची बस आत्मा जगी रहे

    सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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    उत्तर
    1. ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति को मैं अपनी और इस रचना की उपलब्धि मानती हूँ आदरणीया दीदी। हृदय से आभार आपका !

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  6. उत्तर
    1. आपकी 'वाह' यानि रचना सार्थक हुई आदरणीय जोशी सर। बहुत बहुत आभार आपका !

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  7. आदरणीया मैम ,
    सादर नमन। आपकी यह रचना बहुत ही सुंदर और इसके भाव श्रीमद्भागवत महापुराण में आत्मा के वर्णन की याद दिलाते हैं। बहुत ही भावना से लिखी गयी रचना के लिए हृदय से आभार व सादर नमन। मेरा आपसे अनुरोध है कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आएँ , मैं एक कॉलेज छात्रा हूँ और कविताएं लिखती हूँ। आपके आशीष व् प्रोत्साहन के लिए आभारी रहूंगी।

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय अनंता। आप भी बहुत अच्छा लिखती हो। आपका ब्लॉग फॉलो कर लिया है।

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    1. आदरणीय शान्तनु जी, बहुत बहुत धन्यवाद इन प्रेरक शब्दों के लिए।

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  9. अस्ताचल को चला भास्कर
    और एक दिन गया गुजर !
    कितने और पड़ाव रह गए ?
    सहज प्रश्न यह, अचरज क्योंकर ?
    बाकी कितने अनजानों से,
    मुझको और यहाँ मिलना है ?
    कितना और मुझे चलना है ?
    बहुत सुंदर सृजन प्रिय मीना, जीवन के अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर खोजता हुआ! बहुत अनोखा लिख रही हो आजकल. सस्नेह शुभकामनायें 🌹❤❤🌹🌹

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    1. प्रिय रेणु, मैं तो अनोखा नहीं सामान्य ही लिख रही हूँ। अनोखी तो आप हैं जो इतनी व्यस्तता के बावजूद ना केवल बहुत सारी रचनाओं को पढ़ने का बल्कि उन पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणी और विचार देने का समय निकाल लेती हैं। ये बहुत बड़ी बात है। सस्नेह।

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  10. जीवन का फलसफा।
    यह सवाल अपने आप से भी होता है और उस विधाता से भी।
    अच्छी रचना।

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    1. आपकी उपस्थिति से मेरा मनोबल बढ़ता रहता है और रचना की सार्थकता/निरर्थकता दोनों ही पर आपके विचार सदैव मार्गदर्शन करते हैं। कृपया आप आते रहिए आदरणीय सर। बहुत बहुत धन्यवाद।

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  11. पूर्णतः छंदबद्ध ऐसी कविता जिसका शब्द-शब्द मर्मस्पर्शी है । ऐसे काव्य का सृजन तो कोई अत्यन्त प्रतिभाशाली (एवं साथ ही अत्यन्त संवेदनशील) व्यक्ति ही कर सकता है । अभिनंदन आपका ।

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    1. बहुत अच्छा लगा यह जानकर कि मेरी रचना आपको पसंद आई। आपके प्रेरक शब्दों से मेरा उत्साहवर्धन हुआ। बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय जितेंद्र माथुर जी।

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  12. बहुत ही सुंदर मीना जी मन की गहराईयों में उतरता चित
    और अभी ---सच नहीं मालूम किसी को कि जीवन और अभी कितना और क्या बाकी है ,जलना महकना ढलना उगना ? सुंदर सृजन प्रश्न पूछता स्वाभाविक सा काव्यात्मकता सहज सरस सुंदर।

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    1. बहुत बहुत आभार रचना को पसंद देने के लिए आदरणीया कुसुम जी

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  13. उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार रचना को पसंद करने के लिए मनोज जी

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  14. उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार रचना को पसंद करने के लिए
      आदरणीया ज्योति जी

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  15. बहुत ही ह्रदय स्पर्शी रचना |शुभ कामनाएं |

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    1. बहुत बहुत आभार रचना को पसंद करने के लिए
      और अपना आशीर्वाद देने के लिए आदरणीय आलोक जी

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  16. पुराने छूटते हैं तो नए जुड़ जाते हैं ... ये सिलसिला तो जीवन का एक अंग है और इसे सहज ही लेना जीवन को सार्थक बनाता है ...

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  17. यूँ तो, इतनी आसानी से
    मेरे कदम नहीं थकते हैं,
    लेकिन जब संध्या की बेला
    पीपल तले दिए जलते हैं !
    मेरे हृदय - दीप की, कंपित
    लौ पूछे, कितना जलना है ?
    कितना और मुझे चलना है ?
    जीवन कभी पहाड़ सा लगने लगता है एक के बाद एक पड़ाव और चढ़ते चढ़ते सच में मन कहता है बस अब और कितना?...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन।

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  18. यूँ तो, इतनी आसानी से

    मेरे कदम नहीं थकते हैं,

    लेकिन जब संध्या की बेला

    पीपल तले दिए जलते हैं !

    मेरे हृदय - दीप की, कंपित

    लौ पूछे, कितना जलना है ?

    कितना और मुझे चलना है ?
    वाह...बहुत खूब !

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  19. उतना ही चलना होगा जितना कि अपने प्रियतम सागर से मिलने के लिए, उसमें लीन हो जाने के लिए, नदी को चलना होगा.
    मीना जी, बहुत सुन्दर गीत ! महादेवी जी के गीतों की याद हो आई !

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  20. बहुत ही सुंदर, सारगर्भित रचना प्रिय मीना! अच्छा लगा एक बार फिर से पढ़कर! हार्दिक शुभकामनाएं ! जल्द ही नया भी कुछ लिखो! 💕💕💕❤❤🌹🌹💐💐

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  21. यूँ तो, इतनी आसानी से

    मेरे कदम नहीं थकते हैं,

    लेकिन जब संध्या की बेला
    पीपल तले दिए जलते हैं !
    मेरे हृदय - दीप की, कंपित
    लौ पूछे, कितना जलना है ?
    कितना और मुझे चलना है ?
    बहुत ही सटीक प्रश्न और स्वयं का स्वयं से समाधान पूर्ण प्रतिउत्तर👌👌👌🙏🌹🌹💐💐

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  22. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (११-०७-२०२१) को
    "कुछ छंद ...चंद कविताएँ..."(चर्चा अंक- ४१२२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  23. कितना और अभी बाकी है,

    इन श्वासों का ऋण आत्मा पर !

    किन कर्मों का लेखा - जोखा,

    देना है विधना को लिखकर !

    ओह !! बेहद भावुक कर दिया आपने.....कभी-कभी मन थक कर ये सवाल उस विधाता से कर बैठता है जिसका जबाब भी नहीं मिलता। हृदय के अत्यंत कोमल भावों से भरी आपकी इस सृजन को पढ़ने से मैं वंचित रह गई थी जो पुरुषोत्तम जी की वजह से आज पढ़ने का अवसर मिला। बहुत ही सुंदर सृजन मीना जी,सादर नमन आपको

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  24. आपका ये गीत बहुत ही सुंदर! और मन के तारों को छेड़ता सा ।
    लगता है महादेवी वर्मा जी की कोई रचना पढ़ रही हूँ।
    अति सुंदर मीना जी।

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