जिन वादों में, संवादों में
ना हृदय कहीं, ना भाव कहीं।
संबंध नहीं, व्यापार हैं वो
अपनों - सा जहाँ बर्ताव नहीं !
आँधी के संग उड़ते-उड़ते,
माटी सोचे, सूरज छू लूँ !
लेकिन जिस आँगन में खेली,
उस आँगन को कैसे भूलूँ !
उपकृत होकर अपकार करे
माटी का यह, स्वभाव नहीं !
संबंध नहीं, व्यापार हैं वो
अपनों - सा जहाँ बर्ताव नहीं !
जब पलकों में पलनेवाले,
सपनों के टुकड़े हो जाएँ !
जिनसे जोड़ा दो हृदयों को,
वो टाँके उधड़े हो जाएँ !
तब लगता है, इस दुनिया में
निश्छलता का निर्वाह नहीं।
संबंध नहीं, व्यापार हैं वो
अपनों - सा जहाँ बर्ताव नहीं !
व्याकुलता के, चंचलता के,
अस्थिरता के, भावुकता के !
ऐसे पल भी निस्सार नहीं,
वे हैं प्रमाण मानवता के !
क्या निर्मल होगा गंगाजल
गंगा में यदि, प्रवाह नहीं !
संबंध नहीं, व्यापार हैं वो
अपनों - सा जहाँ बर्ताव नहीं !
आह्लाद - विह्वलता का संगम,
हो अश्रु - हास्य का जहाँ मिलन !
उस पावन क्षण में जीने को,
देवों का भी करता है मन ।
है वही प्रार्थना शुभकारी
जिसमें पाने की चाह नहीं !
संबंध नहीं, व्यापार हैं वो
अपनों - सा जहाँ बर्ताव नहीं !