मैंने अपने खून के कुछ
कतरे बोए थे,
उनको सींचा था मैंने
अपनी साँसों से
अपने ख्वाबों को कूट-काटकर
खाद बनाकर डाली मैंने !!!
उन कतरों को धीमे-धीमे
बढ़ता देखा,
नन्हें-नन्हें हाथ पाँव
उनमें उग आए,
मुस्कानों की, किलकारी की
फूट रहीं थीं शाखाएँ जब
तब मैंने इक बाड़ बनाई
नन्हा पौधा पनप रहा था !!!
सारे हक, सारी खुशियाँ,
सारे शौकों को किया इकट्ठा,
बाड़ बनाई,
हर आँधी में, हर तूफां में
दिया सहारा !!!
धीरे धीरे पौधा बढ़कर
वृक्ष हो गया,
अब मेरे समकक्ष हो गया,
उसके अपने हमजोली हैं
उसका है अपना आकाश,
मिट्टी भी उसकी अपनी है,
आँधी तूफां में डटकर अब
कर सकता है स्वयं सामना,
नहीं बाड़ की रही जरूरत !!!
इक दिन कड़ी धूप में मैंने
उसकी छाया जब माँगी तो
उसने उसकी कीमत चाही
मेरी कमियाँ मुझे गिनाईं !
मेरे पैरों के नीचे की,
धरती भी अब तो उसकी थी !!!
कतरे बोए थे,
उनको सींचा था मैंने
अपनी साँसों से
अपने ख्वाबों को कूट-काटकर
खाद बनाकर डाली मैंने !!!
उन कतरों को धीमे-धीमे
बढ़ता देखा,
नन्हें-नन्हें हाथ पाँव
उनमें उग आए,
मुस्कानों की, किलकारी की
फूट रहीं थीं शाखाएँ जब
तब मैंने इक बाड़ बनाई
नन्हा पौधा पनप रहा था !!!
सारे हक, सारी खुशियाँ,
सारे शौकों को किया इकट्ठा,
बाड़ बनाई,
हर आँधी में, हर तूफां में
दिया सहारा !!!
धीरे धीरे पौधा बढ़कर
वृक्ष हो गया,
अब मेरे समकक्ष हो गया,
उसके अपने हमजोली हैं
उसका है अपना आकाश,
मिट्टी भी उसकी अपनी है,
आँधी तूफां में डटकर अब
कर सकता है स्वयं सामना,
नहीं बाड़ की रही जरूरत !!!
इक दिन कड़ी धूप में मैंने
उसकी छाया जब माँगी तो
उसने उसकी कीमत चाही
मेरी कमियाँ मुझे गिनाईं !
मेरे पैरों के नीचे की,
धरती भी अब तो उसकी थी !!!