रविवार, 17 फ़रवरी 2019

विराम

कुछ अपरिहार्य कारणों से एक छोटे अंतराल के लिए लेखन से विदा ले रही हूँ। पिछला वर्ष मेरे लिए बहुत ज्यादा उतार चढाव का रहा। पापा को खोया। कार्यस्थल पर भी अतिरिक्त कार्यभार से मन मस्तिष्क थकान महसूस कर रहा है। जीवन में सबसे कठिन समय वह नहीं होता जब आप अपना सारा धन गँवा दें और आपके पास फूटी कौड़ी भी ना हो। मेरे अनुसार सबसे कठिन समय वह होता है जब आपको आपके 'अपनों' के असली चेहरे दिखाई दें। अब कुछ समय के लिए आत्मचिंतन की आवश्यकता है। 
आप सभी के स्नेह की प्रतीक सैकड़ों टिप्पणियाँ, जो मेरे ब्लॉग पर थीं, वे अब मेरे मन में हैं। जल्दी ही लौटूँगी। यह पूर्णविराम नहीं है। सभी को बहुत सारे स्नेह के साथ 
- मीना

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय मीना बहन --आपके इस निर्णय का स्बागत है | सचमुच कभी कभी हमें बहुत ही चिंतन और मनन के लिए एकांतवास की आवश्यकता होती है जहाँ मन खुद से साक्षात्कार कर सके | आशा है ये अंतराल आप में एक नयी ऊर्जा का संचार कर आपके सृजन के लिए नया सवेरा लेकर आयेगा | ढेरों शुभकामनायें और हार्दिक स्नेह आपके लिए |

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  2. "मेरे अनुसार सबसे कठिन समय वह होता है जब आपको आपके 'अपनों' के असली चेहरे दिखाई दें"
    यही जीवन का सत्य है,इसीलिए मैं अपना दर्द जोकर फिल्म के उस महान विदूषक संग बांट लेता हूँ।

    यह भी सदैव याद रखें मीना दी, ऐसी परिस्थितियों में आत्मचिंतन हृदय की वेदना को और भी भड़काता है। अतः समय समय उस कार्बनडाइऑक्साइड को लेखनी के माध्यम से बाहर भी करने की आवश्यकता है।
    दर्द को शब्द देते रहें,हमारी यही शुभकामनाएं हैं।
    प्रणाम।

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