ये तो सारी बकबक है...
सुनने को तैयार नहीं तुम,
किसे सुनाऊँ, उलझन है !!!
मेरी बकबक सुन-सुनकर तुम,
बोर हो गए ना आखिर ?
चिट्ठी लिखकर 'मेल' करूँगी,
पढ़ लेना जब चाहे दिल....
(अरे बाबा, वो मेल मिलाप वाला
'मेल' नहीं, Mail - मेल ! )
फिर भी व्यस्त हुए तो कहना --
"रोज-रोज क्या झिकझिक है ?"
लिखना विखना खास नहीं कुछ,
ये तो सारी बकबक है !!!
मेरी बकबक में मेरे,
जीवन की करूण कहानी है
गुड़िया, चिड़िया, तितली है,
इक राजा है इक रानी है !!!
( याद आया कुछ ? )
परीदेश की राजकुमारी,
स्वप्ननगर का राजकुमार
हाथी, घोड़े, उड़नतश्तरी,
कई शिकारी, कई शिकार !
कितना कुछ कहना है मुझको,
लेकिन वक्त जरा कम है !
सुनने को तैयार नहीं तुम,
किसे सुनाऊँ, उलझन है !!!
ये खाली पन्ने सुनते हैं,
मेरे मन की सारी बात
बोर ना होते कभी जरा भी,
चाहे दिन हो, चाहे रात !
इन पर आँसू भी टपकें तो,
ये कहते हैं - रिमझिम है !
कितना कुछ कहना है मुझको,
लेकिन वक्त जरा कम है !!!
लिखना-विखना खास नहीं कुछ....
इन पर आँसू भी टपकें तो,
जवाब देंहटाएंये कहते हैं - रिमझिम है !
कितना कुछ कहना है मुझको,
लेकिन वक्त जरा कम है !!!
बड़ी प्यारी है ये बकबक,सच कहा आपने, ये कोरे कागज खामोशी से सब सुन लेते हैं, बेहद प्यारी रचना