गुरुवार, 1 जून 2017

फासला क्यूँ है ...



ज़िंदगी तेरे-मेरे बीच
फासला क्यूँ है ?
तुझको पाने का, खोने का,
सिलसिला क्यूँ है ?

अपने जज्बातों को
दिल में ही छुपाए रखा,
और हर आह को
ओठों में दबाए रखा !
फिर जमाने को मेरी,
खुशियों से शिकवा क्यूँ है ?

मेरे सीने में धड़कती है
तू धड़कन बनकर,
और कदमों से लिपट
जाती है, बंधन बनकर !
मेरी तन्हाई में, यादों का
काफिला क्यूँ है ?

जिस्म मिट जाए, मगर
रूह ना मिट पाएगी,
वो तो खुशबू है,
फिज़ाओं में बिखर जाएगी !
फिर ये दरिया, मेरी आँखों से
बह चला क्यूँ है ?

ज़िंदगी तेरे- मेरे बीच
फासला क्यूँ है ?

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