सोमवार, 4 जुलाई 2016

अभिलाषा


अभिलाषा


कभी तुझसे कोई शिकायत नहीं हो
चाहे जैसे रहूँ चाहे जो भी सहूँ !
कभी तुझसे कोई....

तू परछाईं जैसे मेरे संग रहना
ये संसार अपना लगे, चाहे सपना !
मैं सब में हमेशा तुझे खोज लूँ !
कभी तुझसे कोई ....

बढे चाहे जिम्मेदारियों का बोझ जितना
रहे मुझसे दुनिया खफा चाहे कितना,
मैं आँचल तेरे प्यार का ओढ लूँ !
कभी तुझसे कोई...

मिले वक्त थोड़ा , रहे काम ज्यादा
ना भूलूँ कभी जो किया तुझसे वादा,
मैं साए में तेरे हमेशा रहूँ !
कभी तुझसे कोई...

भटकने लगूँ गर मैं राहों से अपनी
तो तू रोक देना निगाहों से अपनी,
मैं हर वक्त तेरी नजर में रहूँ !
कभी तुझसे कोई...

कभी तुझसे कोई शिकायत नहीं हो
चाहे जैसे रहूँ चाहे जो भी सहूँ !
कभी तुझसे कोई..
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5 टिप्‍पणियां:

  1. भगवत्शरण की उत्तम रचना.
    साझा करने हेतु आभार.
    अयंगर.

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  2. आपकी लिखी  रचना  शुकवार   24 जून  2022     को साझा की गई है ,पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।संगीता स्वरूप 

    जवाब देंहटाएं
  3. समर्पण भाव की शब्दों से सजी सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. समर्पण प्रेम का सबसे खूबसूरत और निस्वार्थ भाव होता है। बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी।

    प्रणाम
    सादर।

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