बुधवार, 22 मई 2024

बीते बरबस, बरस संग के

तन का जब सौंदर्य रहे ना,
ना ही मन का यौक्न !
मूक, चहकती चंचल चिड़िया 
ताके सूखा उपवन ।
हृदय तुम्हारा तब भी होगा
क्या आतुर मिलने को ?
बीते बरबस, बरस संग के
रह गए दिवस गिनने को !

ना जाने क्यूँ बात - बात पर
भर आती हैं आँखें,
यादों के पंछी इस आँगन
गिरा गए फिर पांखें !
उतरेंगे वे बाग तुम्हारे
कल दाने चुगने को ।
बीते बरबस, बरस संग के
रह गए दिवस गिनने को !

कहीं दूर पर दीप नेह का 
टिमटिम कर जलता है,
प्रेम, परीक्षा देने से कब
घबराता, टलता है ?
थके हुए कदमों से भी
तत्पर हूँ मैं चलने को ,
बीते बरबस, बरस संग के
रह गए दिवस गिनने को !

जब मौसम मधुऋतु लेकर
लौटेगा, पुनः मिलेंगे !
हाथ तुम्हारा थामे, तब
जीवनभर संग चलेंगे।
अब जितना भी निभा सके,
उतने में खुश हो लेना,
रूठ ना जाना, छुपकर हमसे
तुम प्रतिशोध ना लेना। 
वृक्ष गिराता पत्र पुराने
नव पल्लव उगने को !
बीते बरबस, बरस संग के
रह गए दिवस गिनने को !