फिर सुबह के गीत लिख दो साथियो !
नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !
तुम लहू के रंग को पहचान लो,
तुम हवाओं की दिशा को जान लो,
कर ना पाए अब तुम्हें गुमराह कोई,
ना बदल पाए तुम्हारी चाह कोई ,
इक अनोखी रीत लिख दो साथियो !
नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !
जात भी है, धर्म भी है, पंथ भी !
हर तरह के देश में हैं ग्रंथ भी,
क्यूँ मगर इनके लिए लड़ते हैं हम,
बात पर अपनी ही क्यूँ अड़ते हैं हम ?
तुम लिखो एक प्रेम की पुस्तक नई,
इंसान की तुम जीत लिख दो साथियो !
नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !
फिर सुबह के गीत लिख दो साथियो !
नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !