प्रेम....
जब नया नया होता है,
तब लगता है कि प्रेम है -
गुनगुनाना, लजाना,
सिहरना, सिमटना !
समझने की कोशिश,
कि हो क्या रहा है ?
फिर कुछ समय बाद लगता है -
प्रेम ये नहीं, प्रेम तो है -
रूठना - मनाना,
झगड़ना - सताना,
अधिकार जताना, जबरन बुलाना !
वक्त के साथ
फिर रूप बदलता है प्रेम का !
और लगने लगता है कि प्रेम है -
नयनों का सावन,
प्रतीक्षा की घड़ियाँ !
खोने का डर !
छिन जाने की आशंका !
समय के साथ साथ
प्रेम भी प्रौढ होता है
और नए अवतार में प्रकटता है !
अहसास होता है कि प्रेम है -
एक दूजे के हित की चिंता,
बिछोह के गम के साथ
जितना भी संग मिला, उसमें संतोष !
छोड़ देना हक की बातें !
'बस तुम खुश रहो' की कामना !
उम्र के एक मुकाम पर
पहुँचने के बाद,
बस यही लगता है कि प्रेम है -
प्रार्थना, दुआ, सलामती की कामना
दो हृदयों का एक हो जाना,
और उनकी भावनाओं का भी।
ईश्वर तुम्हें हमेशा खुश रखे,
मौन दुआओं का असर
सबसे अधिक होता है !!!