कभी वह भी प्रकृति से जुड़ी थी,
किताबों में खोई रहती थी,
जिंदगी में क्या चाहिए, पूछने पर
जवाब देती थी - एक हरा भरा शांत कोना
और एक पुस्तकों से भरी लाइब्रेरी।
उसकी खुशियाँ भी मासूम थीं
उसी की तरह,
उसकी ख्वाहिशें भी भोली थीं
बिल्कुल उसी की तरह ।
धीरे धीरे दुनिया की नजर लगी,
उसकी ख्वाहिशें उसकी न रह गईं
उसकी खुशियों पर दूसरों की
चाहतों का रंग चढ़ गया ।
उसके बगीचे और उसकी लाइब्रेरी में
उसकी मरी हुई इच्छाओं की सड़ांध भर गई,
उसकी चिड़ियों और बुलबुलों ने
झरोखों में आकर चहकना छोड़ दिया,
तितलियाँ भी उस हरियाले कोने का
रास्ता भूल गईं ।
और हद तो तब हो गई जब
उसके विचारों का अपहरण करके
उन्हें कालकोठरी में बंद कर दिया गया ।
शायद फिरौती में माँगी गई रकम
उसकी जिंदगी से भी अधिक है,
अपनी तमाम साँसों को देकर भी वह
अपने विचारों को छुड़वा नहीं पाएगी !!!