चूरा चूरा चाँद हो गया,
टुकड़े टुकड़े सारे तारे !मेरे पास यही दोनों थे,
अब तुमको मैं क्या दूँ ? बोलो !!!
निर्वासित शापित शब्दों में,
इतनी शक्ति नहीं बची है,
अब भी तुमसे प्यार मुझे,
ये किन शब्दों में बोलूँ ? बोलो !!!
बेनामी रिश्ते की पीड़ा
पंछी और पेड़ से पूछो,
दुनिया के रस्मो रिवाज में
इस रिश्ते को भूलूँ ? बोलो !!!
इस दिल ने क्यों मान लिया हक
किसी गैर की धड़कन पर,
कैद कहीं इस दिल को कर दूँ
या अधिकार सँजो लूँ ? बोलो !!!
अगर कहीं तुम मिल जाओ तो
कह दूँ जो मुझको कहना है
या फिर उस वादे की खातिर
अपने नयन भिगो लूँ ? बोलो !!!
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार प्रिय श्वेता।
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर आभार ओंकार जी
हटाएंप्रेम की कोई भाषा हुई है भला?? बोलो
जवाब देंहटाएंहक़ दिया जाता है और
जबरदस्ती से छीन भी लिया जाता।
वाह
बहुत प्यारी रचना।
नई रचना- सर्वोपरि?
बहुत बहुत आभार रोहितास जी
हटाएंबेनामी रिश्ते की पीड़ा
जवाब देंहटाएंपंछी और पेड़ से पूछो,
दुनिया के रस्मो रिवाज में
इस रिश्ते को भूलूँ ? बोलो !!!
प्रिय मीना बहन, अनुराग के शिखर को स्पर्श करती रचना जिसमें विचलित मन की विवशता शब्द शब्द मुखर हो रहे हैं । बहुत बहुत शुभकामनायें और बधाई आपको । 🙏🙏💐💐💐💐💐
बहुत बहुत आभार प्रिय रेणु बहन
हटाएंअति सुन्दर।
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