मन रे, अपना कहाँ ठिकाना है ?
ना संसारी, ना बैरागी,
जल सम बहते जाना है,
बादल जैसे संग पवन के
यहाँ वहाँ उड़ जाना है !
जोगी जैसे अलख जगाते
नई राह मुड़ जाना है !
मोहित होकर रह निर्मोही,
निद्रित होकर भी जागृत!
ना संसारी, ना बैरागी,
जल सम बहते जाना है,
बादल जैसे संग पवन के
यहाँ वहाँ उड़ जाना है !
जोगी जैसे अलख जगाते
नई राह मुड़ जाना है !
नहीं घरौंदा, ना ही डेरा,
धूनी नहीं रमाना है !
मन रे, अपना कहाँ ठिकाना है ?धूनी नहीं रमाना है !
मोहित होकर रह निर्मोही,
निद्रित होकर भी जागृत!
चुन असार से सार मना रे,
विष को पीकर बन अमृत !
विष को पीकर बन अमृत !
काहे सोचे, कौन हमारा,
कच्चा ताना बाना है!
कच्चा ताना बाना है!
टूटा तार, बिखर गई वीणा,
फिर भी तुझको गाना है!!!
फिर भी तुझको गाना है!!!
मन रे, अपना कहाँ ठिकाना है ?
सपनों की इस नगरी में
कब तक भटकेगा दर दर
कब तक भटकेगा दर दर
स्वप्न को सत्य समझकर
रह जाएगा यहीं उलझकर!
रह जाएगा यहीं उलझकर!
निकल जाल से, क्रूर काल से
तुझको आँख मिलाना है
तुझको आँख मिलाना है
नाटक खत्म हुआ तो
भ्रम का परदा भी गिर जाना है !
भ्रम का परदा भी गिर जाना है !
मन रे, अपना कहाँ ठिकाना है ?