आकाश के असीम पटल पर,
रूपसी प्रिया का करता चित्रांकन,
असंतुष्ट - सा, अस्थिर मति,
वह चंचल चित्रकार !!!
क्षण - क्षण करता नव प्रयोग,
किंतु छवि लगती अधूरी !
कभी लाल, कभी पीला, नीला....
अब.... गुलाबी, सुनहरा, सिंदूरी !!!
रंगों का मिश्रण, अद्भुत संयोजन,
अधीर हो करता चित्रांकन,
असंतुष्ट - सा, अस्थिर मति,
वह चंचल चित्रकार !!!
नारंगी, किरमिजी, जामुनी,
सलेटी, रुपहला, बादामी, बैंगनी,
घोल घोल रंगों को छिड़कता,
पुनः अपनी ही कृति को निरखता !
कूची डुबा - डुबा हर रंग में,
आड़ा,तिरछा,वक्र,करता रेखांकन !
असंतुष्ट - सा, अस्थिर मति,
वह चंचल चित्रकार !!!
जब ना बन पाई मनभाती छवि,
होकर उदास, वह चितेरा रवि
जलसमाधि को हुआ उद्युत,
तब प्रकटी संध्या, रूपसी अद्भुत !!!
लो अब पूर्ण हुआ चित्रांकन,
प्रिया को बाँधे प्रगाढ़ आलिंगन !
स्मितमुख विदा हुआ धीमे - धीमे,
वह बावरा, चंचल चित्रकार !!!
रूपसी प्रिया का करता चित्रांकन,
असंतुष्ट - सा, अस्थिर मति,
वह चंचल चित्रकार !!!
क्षण - क्षण करता नव प्रयोग,
किंतु छवि लगती अधूरी !
कभी लाल, कभी पीला, नीला....
अब.... गुलाबी, सुनहरा, सिंदूरी !!!
रंगों का मिश्रण, अद्भुत संयोजन,
अधीर हो करता चित्रांकन,
असंतुष्ट - सा, अस्थिर मति,
वह चंचल चित्रकार !!!
नारंगी, किरमिजी, जामुनी,
सलेटी, रुपहला, बादामी, बैंगनी,
घोल घोल रंगों को छिड़कता,
पुनः अपनी ही कृति को निरखता !
कूची डुबा - डुबा हर रंग में,
आड़ा,तिरछा,वक्र,करता रेखांकन !
असंतुष्ट - सा, अस्थिर मति,
वह चंचल चित्रकार !!!
जब ना बन पाई मनभाती छवि,
होकर उदास, वह चितेरा रवि
जलसमाधि को हुआ उद्युत,
तब प्रकटी संध्या, रूपसी अद्भुत !!!
लो अब पूर्ण हुआ चित्रांकन,
प्रिया को बाँधे प्रगाढ़ आलिंगन !
स्मितमुख विदा हुआ धीमे - धीमे,
वह बावरा, चंचल चित्रकार !!!