मंगलवार, 1 जुलाई 2025

विचित्र लोग

बड़े विचित्र होते हैं कुछ लोग
भटकते हैं प्रेम की तलाश में
लेकिन अहं इतना प्रबल होता है
कि स्वीकार नहीं कर पाते
ना ही जता पाते हैं किसी तरह
बस आँकते रहते हैं, मापते रहते हैं
या तौलते रहते हैं अपने ही प्रेम को !

इनके पास प्रेम को तौलने का
विचित्र तराजू है
जिसमें दो नहीं, अनेक पलड़े हैं
तराजू के उन पलड़ों में रखा प्रेम
कभी कहीं अधिक हो जाता है
तो कभी कहीं ! 
विचित्र स्थिति !

फिर ये संतुलन बनाने की कोशिश में
इधर से थोड़ा प्रेम कम करके
दूसरी तरफ के पलड़े में डालते हैं
प्रेम के तराजू का नियम या सिद्धांत
विज्ञान के नियमों से उलटा है
यहाँ ज्यादा वाले का स्थान ऊँचा है
और कम वाले का नीचे !

जब पाते हैं कि उधर बढ़ गया 
और वो वाला पलड़ा तो
सिर पर चढ़ गया !
तब इधर थोड़ा-थोड़ा बढ़ाते ,
उधर से थोड़ा निकालकर !

ना जाने इनकी चाह क्या है
ये खुद भी नहीं समझ पाते,
ना ही दूसरों को समझा पाते 
किसी को किसी रिश्ते में बाँधते
तो किसी को किसी रिश्ते में,
बिना रिश्तों का प्रेम इनके लिए
बेमानी और निरर्थक होता है
होता है अस्तित्वहीन !

इसी असंतुलन को
संतुलित करते - करते 
बीत जाता है जीवन और
छूट जाता है तराजू
टूटकर बिखर जाते हैं सारे पलड़े 
हाथ नहीं आता है कहीं भी,
कुछ भी, कोई भी !
कब समझेंगे ये
कि प्रेम का कोई मापदंड नहीं होता !