रविवार, 23 फ़रवरी 2025

अपने हृदय में अब मुझे विश्राम दो

थक गए कदम, थका - थका है मन,
अपने हृदय में अब मुझे विश्राम दो ।
अनवरत अथक प्रवास को मेरे,
प्रिय ! किसी प्रयत्न से विराम दो ।

परिक्रमा कब तक करेगी सूर्य की,
कब तलक करे स्वयं का परिभ्रमण !
व्योम को निहारती वसुंधरा
काल्पनिक क्षितिज का क्यों करे वरण !
है धरा के धैर्य का अंतिम चरण,
अब गगन को भी कोई आह्वान दो।
अनवरत अथक प्रवास को मेरे
प्रिय ! किसी प्रयत्न से विराम दो ।

समय - सरिता बह रही अविराम है,
हैं हमारी नियति में विपरीत तट !
देह के संदर्भ देना व्यर्थ है,
प्राण के आधार पर यदि हैं निकट !
मैं उगा लूँ पत्थरों पर हरीतिमा
काल के प्रवाह को तुम थाम दो ।
अनवरत अथक प्रवास को मेरे
प्रिय ! किसी प्रयत्न से विराम दो ।