कुछ इकतरफा रिश्ते बनते हैं
किसी नदी के एक किनारे, चलते-चलते
एक दिशा में ही, सूरज के उगते-उगते
एक तरफ ही रोज, चाँद के ढलते-ढलते
ये इकतरफा रिश्ते भी बन जाते हैं.....
तन्हा-तन्हा से लम्हे भी कट जाते हैं
इंतजार में थमते, बहते, तरसे-तरसे
नयन भरे जैसे बदरा अब बरसे, बरसे
कोई गुजरा अभी इधर से, क्या तुम ही थे ?
यही सोचते तन्हा लम्हे कट जाते हैं....
अल्फ़ाज़ जुबां तक आते आते रुक जाते हैं
कलम उठाकर उनको लिखना भी चाहूँ,
तो चिड़िया बनकर उड़ जाते हैं
इधर उधर को मुड़ जाते हैं, छुप जाते हैं
अल्फ़ाज़ जुबां तक आते-आते रुक जाते हैं.....
कोई बेगाना जब अपना-सा लगता है,
मन करता है, काटूँ अपने दिल से टुकड़े,
और रोप दूँ उसके दिल में,
ज्यों गुलाब की कलमें बोती हूँ बारिश में !
कोई बेगाना जब अपना सा लगता है....
किसी नदी के एक किनारे, चलते-चलते
एक दिशा में ही, सूरज के उगते-उगते
एक तरफ ही रोज, चाँद के ढलते-ढलते
ये इकतरफा रिश्ते भी बन जाते हैं.....
तन्हा-तन्हा से लम्हे भी कट जाते हैं
इंतजार में थमते, बहते, तरसे-तरसे
नयन भरे जैसे बदरा अब बरसे, बरसे
कोई गुजरा अभी इधर से, क्या तुम ही थे ?
यही सोचते तन्हा लम्हे कट जाते हैं....
अल्फ़ाज़ जुबां तक आते आते रुक जाते हैं
कलम उठाकर उनको लिखना भी चाहूँ,
तो चिड़िया बनकर उड़ जाते हैं
इधर उधर को मुड़ जाते हैं, छुप जाते हैं
अल्फ़ाज़ जुबां तक आते-आते रुक जाते हैं.....
कोई बेगाना जब अपना-सा लगता है,
मन करता है, काटूँ अपने दिल से टुकड़े,
और रोप दूँ उसके दिल में,
ज्यों गुलाब की कलमें बोती हूँ बारिश में !
कोई बेगाना जब अपना सा लगता है....