मनवीणा के, मौन स्वरों को
साथी, झंकृत करते जाना,
जब तक श्वासों में सरगम है,
तुम मेरे गीतों को गाना ।
साथी, झंकृत करते जाना,
जब तक श्वासों में सरगम है,
तुम मेरे गीतों को गाना ।
इन्हें गाते गाते, नयन नम ना करना,
इन्हें गुनगुनाते सदा मुस्कुराना !
ये सुरभित सुमन तुमको सौंपे है मैंने
हृदय के सदन में, इनको सजाना !
ये जब सूख जाएँ, इन्हें भाव से तुम
स्मृतियों की गंगा में, साथी बहाना !
जब तक श्वासों में सरगम है,
तुम मेरे गीतों को गाना !
मनवीणा के, मौन स्वरों को
साथी, झंकृत करते जाना ।
धरोहर नहीं ये, नहीं कोष कोई,
इन्हें खर्च कर दो, इन्हें बाँट दो तुम !
नहीं पाश कोई, हैं ये नेह डोरी
जो लगते हों बंधन, इन्हें काट दो तुम !
है क्या इनका नाता तुम्हारे सुरों से,
कभी कोई पूछे तो उसको बताना !
जब तक श्वासों में सरगम है,
तुम मेरे गीतों को गाना !
मनवीणा के, मौन स्वरों को
साथी, झंकृत करते जाना ।
सुंदर भावप्रवण रचना
जवाब देंहटाएंतुम मेरे गीतों को गाना... बेहद सुंदर एहसास दी...हृदय से फूटे उद्गार हृदय छू रहे।
जवाब देंहटाएंभावनाओं को गूँथने में आपका कोई जवाब नहीं दी।
सस्नेह प्रणाम।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर मर्म स्पर्शी सराहनीय
जवाब देंहटाएंबेहद मर्मस्पर्शी,
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