रविवार, 15 सितंबर 2024

तुम मेरे गीतों को गाना !

मनवीणा के, मौन स्वरों को
साथी, झंकृत करते जाना,
जब तक श्वासों में सरगम है,
तुम मेरे गीतों को गाना ।

इन्हें गाते गाते, नयन नम ना करना,
इन्हें गुनगुनाते सदा मुस्कुराना  !
ये सुरभित सुमन तुमको सौंपे है मैंने
हृदय के सदन में, इनको सजाना !
ये जब सूख जाएँ, इन्हें भाव से तुम
स्मृतियों  की गंगा में, साथी बहाना !
जब तक श्वासों में सरगम है,
तुम मेरे गीतों को गाना !
मनवीणा के, मौन स्वरों को
साथी, झंकृत करते जाना ।

धरोहर नहीं ये, नहीं कोष कोई,
इन्हें खर्च कर दो, इन्हें बाँट दो तुम !
नहीं पाश कोई, हैं ये नेह डोरी
जो लगते हों बंधन, इन्हें काट दो तुम !
है क्या इनका नाता तुम्हारे सुरों से,
कभी कोई पूछे तो उसको बताना !
जब तक श्वासों में सरगम है,
तुम मेरे गीतों को गाना !
मनवीणा के, मौन स्वरों को
साथी, झंकृत करते जाना ।









5 टिप्‍पणियां:

  1. तुम मेरे गीतों को गाना... बेहद सुंदर एहसास दी...हृदय से फूटे उद्गार हृदय छू रहे।
    भावनाओं को गूँथने में आपका कोई जवाब नहीं दी।
    सस्नेह प्रणाम।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. बहुत बहुत सुन्दर मर्म स्पर्शी सराहनीय

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहद मर्मस्पर्शी,

    जवाब देंहटाएं